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हिन्दी-गूर्जर
गुणवान्-गुरु दौलतसिंह लोढ़ा ‘अरविंद' सरस्वती विहार, भीलवाड़ा
गुरु ! गुणवंता, गुण का स्थान - सत्यनिष्ठता है गुरु ! तुम में,
सत्यनिष्ठ के शरण महान । शांत, दांत तुम, कांत रुचि हो, .
पुरुष प्रवर की लब्ध पहिचान ॥ गुरु॥ नहीं विफलता फटकी तुम पर,
हुई विकलता स्वयं हैरान । अथक श्रमी हो, हीन आलस्य,
नीतिनिपुण हो, धर्मप्रधान ॥गुरु ॥ विविध साहित्य-अंगों में गुरु !
अमर रहेगी देन महान । पुरातत्त्व, इतिहास करेंगे।
नित्य तुम्हारे नव गुणगान ॥ गुरु ॥ धर्मक्षेत्र के रहे प्रदीपक,
शासन-सेवा करी महान । 'गुरु चरित' तुम्हारा वरदायी
भव्यजनों को है वरदान ॥ गुरु ॥ सर्वव्रती सन्यासी हो तुम ।
त्याग तम्हारा पथ-कल्याण । पंचभूत 'अरविंद' मांगता
वरद हस्त का छत्र - वितान ॥ गुरु ॥
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