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श्री यतीन्द्रसूरि अभिनंदन ग्रंथ
विविध
से विभूषित करके उनका नाम विजयप्रभसूरि प्रकट किया। इसके बाद वे सूरत को गये । सूरत से अहमदाबाद को गये।
धनजी शाह एवं उनकी पत्नी धनश्रीने बहुत बड़ा उत्सव किया । यहां से सूरिजी गुजरात की ओर चले और अहमदाबाद पहुंचे । वहां सूरिजी ने बीबीपुर नाम के अहमदाबाद के उपपुर में रहकर पर्युषण महापर्व की आराधना की । यहां से सूरिजी ने श्री शंखेश्वर - पार्श्वनाथ के दर्शन के लिए प्रस्थान किया ।।
देवानन्द महाकाव्य का कलापक्ष मेघ विजयजी की शैली बहुत ही अलंकृत है । उसमें अलंकारों के प्रयोग में नवीनता, प्रसाद और निर्दोषता है। श्लेष में बड़ा परिश्रम किया गया है। यमक सोद्देश्य और प्रभावशाली हैं। मेघ विजयजी की उपमायें निःसन्देह सुन्दर और मनोहर है । एक दो उदाहरण देखिये ।:
१. ऋषिकुल्येव सिद्धानाम् शुद्धवर्णा सरस्वती,
२. धर्मः पावोबुद्धः शुद्ध हंसाभिनन्दन : ___ इत्यादि उपमायें बड़ी सुन्दर और उपयुक्त बनी हैं । परन्तु सर्वत्र यह बात नहीं हैं। इनकी अनेक उपमा माघ के समान ही कठिन और गूढ हैं । उपमाओं में कहीं कालीदास जैसी सरलता, रमणीयता, आकर्षकता और स्वाभाविकता भी मिलती हैं। जैसे'ऋषिकुल्येव सिद्धानाम् शुद्धवर्णा सरस्वती'
इनकी सभी उपमायें रस की पोषक हैं। श्लेष का प्रयोग उत्तम, किंतु क्लिष्ट है । मुग्धकारिणी उत्प्रेक्षा, रूपक, अर्थातरन्यास का भी प्रचुर प्रयोग है।
रूपक :- रहः स्थले ज्वलत्येवमसौ नरशिखित्रयो ।
अक्षा :-मुलमन्या वने जन्य पौरुषेय वृता इव अर्थातरन्यास :-कि पुनर्वार्तिकर्भाष्य : सूत्रवत् सर्वतो मुखम्,
तत्वमेव वदत्यार्या प्रकृत्या मितभाषिण : मेघविजयजी छंदों के प्रयोग में भी सिद्धहस्त हैं। देवानंद महाकाव्य में काव्यशास्त्र के नियमों का पालन किया गया है। एक सर्ग में एक ही छंद का प्रयोग किया गया है। सर्ग के अंत में विभिन्न छंदों का प्रयोग मिलता है। चतुर्थ सर्ग के मध्य में भी एक-दो स्थानों पर छन्द बदला गया है। किन्तु एक - दो श्लोकों में छन्द - परिवर्तन से महाकाव्य में कोई दोष नहीं आता । १७ वीं शताब्दी के काव्यों में छन्दों की बहुलता आई थी। महाकाव्य के सातों सों में क्रमशः निम्नलिखित छन्द हैं - वंशस्थ, अनुष्टुप, उपजाति, वसन्ततिलका, छुतविलम्बित, पुष्पिताम्रा छन्दों का प्रयोग मिलता है । इनके अतिरिक्त प्रत्येक सर्ग के अन्तिम भाग में मिलने वाले छन्द निम्नलिखित ये हैं - द्रुतविलम्बित, वसन्ततिलका, औपछन्दसिकम् , उपजाति, तोटकम, स्वागता, पुष्पिताना
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