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श्री यतीन्द्रसूरि अभिनंदन ग्रंथ
* विविध
कराने वाली कल्पनायें, अनेक धर्मोपदेश आदि विशेषतायें हैं । तत्कालीन सांस्कृतिक चित्रण - नाना प्रकार के वाद्य, वस्त्र, भोजनगृहवर्णन, आकाश में उड़ने के यंत्र, कन्दुकक्रीडा आदि का बड़ा मनोहारी वर्णन मिलता है। आचार्य आर्यनन्दि का जीवन्धर को शिक्षान्त उपदेश कादम्बरी में शुकनास द्वारा चन्द्रापीड को दिये उपदेश की याद दिलाता है । वादीभसिंह का दूसरा नाम ओउयदेव तथा गुरु का नाम पुष्पसेन था । इसका समय ११ वीं शता. का उत्तरार्ध एवं १२ वीं का पूर्वार्ध माना जाता है ।
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सिद्धसेन गणि की 'बन्धुमती' नामक 'आख्यायिका का भी गद्य काव्य के रूप में नाम सुना जाता है; पर वह अभी तक ' उपलब्ध नहीं हुई है ।
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पद्य काव्यों में लघुकाव्य के रूप में जैन विद्वानों ने अनेक काव्य लिखे हैं जिनमें वादिराज का ' पार्श्वनाथ चरित ( १०२५ ई.) वादीभसिंह का ' क्षत्रचूडामणि' ' ( १२ वीं शताब्दी ), महासेन का 'प्रद्युम्नचरित' (१२ वीं शता० ), मुनिचन्द्र का " शांतिनाथ' चरित' (१३ वीं शता०), अभयदेव का 'जयन्तविजय काव्य' (सं. १२७८ ), अर्हदास का ' मुनिसुव्रत' काव्य ' ( १३ वीं शता० ) आदि विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं । महाकाव्यों में वीरनन्दि का ' चन्द्रप्रभ* महाकाव्य ' (१० वीं शता० ), हरिश्चन्द्र का ' धर्मशर्माभ्युदय* ' ( १२ वी शता० वाग्मट का ' नेमिनिर्वाण + महाकाव्य ' और वस्तुपाल का ' नरनारायणानन्द महाकाव्य ' १३ वीं श० ) उत्तम माने गये हैं। इनमें हरिश्चन्द्र का ' धर्मशर्माम्युयय ' माघ के शिशुपाल के अनुकरण पर बहुत सुन्दर काव्य है। इसमें सरसपदों की योजना, विविध छन्दों और अलंकारों की छटा दृष्टव्य है । 'नेमिनिर्वाण' और ' नरनारायणनन्द' की शैली और कवि - कल्पना अपूर्व हैं । इन काव्यों को जैनाचार्यों ने काव्यशास्त्रियों द्वारा सम्मत महाकाव्यों के गुणों से सम्पन्न बनाया हैं । इनमें विस्तृत रूप से ऋतुओं का वर्णन, संध्या, प्राप्तः, चन्द्रोदय, रात्रि, सुरत एवं वनक्रीडा आदि का विस्तृत वर्णन मिलता है। इन काव्यों में नवों रसों का प्रदर्शन करते हुए अन्त में वैराग्य से शान्तरस द्वारा ग्रन्थसमाप्ति की गई है ।
श्लेषमय चित्रकाव्यों में हमें दिग० जैन धनञ्जय (वि. ९ वीं श० ) का अपूर्व काव्य ' द्विसंधान x ' अपरनाम राघवपाण्डवीय मिलता है । १८ सर्गों के इस काव्य के प्रत्येक छन्द से रामकथा और पाण्डवों की कथा का अर्थ निकलता है । द्विसंधान का अर्थ है दो अर्थों का बोध करानेवाला । इसी कोटि की दूसरी रचना वृहद्रच्छ के आचार्य हेमचन्द्रसूरि की 'नाभेय नेमिकाव्य ' (१२ वीं शता० ) है । इसके प्रत्येक छन्द से आदिनाथ और नेमिनाथ की कथा निकलती है ।
१. वाणिविलास प्रेस, तंजोर ।
३.
यशोविजय ग्रन्थमाला, बनारस । जैन सिध्दान्त भवन, आरा।
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२. माणिकचन्द्र दिग. जैन ग्रन्थमाला, बम्बई ।
४.
निर्णय सागर प्रेस, बम्बई ।
** निर्णय सागर प्रेस, बम्बई ।
५.
+i गायकवाड ओरि सिरीज, बडोदा ।
x निर्णयसागर प्रेस, बम्बई : जिनरत्नकोश, भाग १, पृ. २१० ।
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