SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 344
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विषय खंड संस्कृत में जैनों का काव्यसाहित्य २२३ वस्तुवर्णित की गई है । यह कृष्णमिश्र के नाटक 'प्रबोधचन्द्रोदय के समान ही बड़ा रोचक है । इस कोटि के अन्य नाटकों में देवचन्द्रगणिकृत 'मानमुद्राभंजन' और जिनसमुद्रसुरिकृत 'तत्त्वप्रबोध नाटक' (सं. १७३० ) भी उल्लेखनीय हैं । दृश्य काव्य की अपेक्षा विशेष रूप से श्रव्य काव्यों की रचना में जैनाचार्य प्रवृत्त हुए हैं । इसके विविध अंगों की महत्त्वपूर्ण कृतियां संस्कृत साहित्य में उपलब्ध हुई हैं । इन कृतियों को गद्य, पद्य, लघुकाव्य तथा चम्पू में विभक्त किया गया है । गद्यकाव्य-संस्कृत साहित्य में गद्य काव्यों की संख्या बहुत कम है। ई० की ६ वीं शता० से ८ वीं शता० तक गद्य-साहित्य के कुछ नमूने सुबन्धु की 'यासवदत्ता,' बाण की ' कादम्बरी' एवं 'हर्षचरित' तथा कवि दण्डी के 'दशकुमारचरित' के रूप में मिले हैं। फिर दो शताब्दी के बाद धनपाल की 'तिलकमंजरी” (१० वीं शता० और वादीभसिंह के 'गद्य चिन्तामणि' (१२ वीं शता०) के रूप में जैन गद्य काव्यों के दर्शन होते हैं । ये दोनों मान्य जैनाचार्य थे। 'तिलकमंजरी' एक गद्य आख्यायिका है जिसमे तिलकमंजरी और समरकेतु के प्रेम सम्बन्ध की कहानी है। नायिका के नाम से इस ग्रन्थ का नाम रखा गया है। गद्यों के बीच कहीं-कहीं पद्य भी आ गये हैं जो कि लम्बे गद्यों को पढ़ने वाले पाठकों के लिए विश्राम का काम देते हैं। यद्यपि कवि ने शैली और भावों में कहीं-कहीं बाण की कादंबरी का अनुकरण किया है तथापि वह अपने वर्णन-वैविध्य एवं वैचित्र्य के कारण बाण से आगे बढ़ गया है। ग्रन्थ के प्रारंभ में धारा के परमार राजाओं की वैरिसिंह से लेकर भोज तक वंशावलि दी गई है जो परमार वंश के इतिहास की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है । इस ग्रन्थ में सांस्कृतिक जीवन, राजाओं का वैभव, उनके विनोद के साधन, तत्कालीन गोष्ठियां, अनेक प्रकार के वस्त्रों के नाम, नाविक तंत्र, युध्दास्त्र आदि का जीता-जागता वर्णन मिलता है। कवि धनपाल अपने समय के मान्यकवि थे। ये परमार राजा मुन्ज की सभा के सदस्य थे तथा राजा द्वारा सरस्वतीपद से विभूषित किये गये थे। ये कवि प्राकृत के भी अच्छे पण्डित थे । उनने 'पाइयलच्छी' नामक प्राकृत कोश की रचना की है। ये प्रसिध्द मुनि शोभन के भाई थे द्वितीय गद्य ग्रन्थ गद्यचित्रामणि है । इसक लेखक आ० वादीभसिंह सरल से सरल और गद्य रूप में कठिन से कठिन संस्कृत लिखने में पटु थे। उन्हें जीवन्धर की कथा अतिप्रिय थी। इस कथा को लेकर उन्होंने सरल संस्कृत में ११ लम्बों में अनेक नीतिवाक्यों से परिपूर्ण 'क्षत्रचूड़ामणि' नामक एक काव्य लिखा तथा इसी कथा पर प्रौढ़ संस्कृत में 'गद्यचिन्तामणि' लिखा जिसमें भी ११ लम्ब हैं । काव्य में पदलालित्य, श्रवणीय शब्दविन्यास, स्वच्छन्द वचन-विस्तार, सुगमरीति से कथाबोध, चित्त को विस्मय १ काव्यमाग निर्णय सागर परेस, बम्बई से प्रकशित । २ वाणी विलास प्रेस, तंजोर द्वारा प्रकाशित Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012074
Book TitleYatindrasuri Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy