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________________ विषय खंड संस्कृत में जैनों का काव्य साहित्य नहीं हो सकती; फिर भी काव्य साहित्य के प्रेम से कुछ जैन विद्वानों ने नाटकों की रचना की है। उनमें से कुछ तो पौराणिक कथावस्तु को लेकर कुछ मध्यवर्गीय जीवन को चित्रण करते हुए तथा कुछ अधैतिहासिक कथानकों पर और कुछ साङ्गरूपक के ढंग से रचे गये हैं। कामुकतावर्धक घोर शृंगारी नाटकों का जैन साहित्य मैं एकदम अभाव है; क्योंकि निकृष्ट प्रकार का शृंगार उनकी प्रकृति के प्रतिकूल है । पौराणिक कथावस्तु को लेकर लिखे गये नाटकों में आचार्य हेमचन्द्र के प्रधान शिष्य रामचन्द्र सूरि के नलविलास', 'रघुविलास', ' यदुविलास '. 'सत्य हरिश्चन्द्र', 'निर्भय भीमव्यायोग', 'राघवाभ्युदय', एवं वनमाला नाटिका प्रसिद्ध हैं । इनमें ' नलविलास ' ' ' सत्यहरिश्चन्द्र' और 'निर्भय भीमव्यायोग प्रकाशित हो चुके हैं । 'नलविलास' महाभारत की नलदमयन्ती कथा के आधार पर I frent as अनुरूप परिवर्तित कर लिखा गया है । इसी तरह महाभारत की कथा को लेकर 'सत्य हरिश्चन्द्र' भी ६ अंकों में लिखा गया है । इस नाटक का सन् १९१३ में इटालियन अनुवाद भी हो चुका है । इन दोनों नाटकों में उक्त कवि द्वारा मान्य ' सुखदुखात्मक रसः' का अच्छा परिपाक हुआ है । 'निर्भय भीमव्यायोग यह एक अंक का व्यायोग है जिसमें भीमद्वारा बक राक्षस के वध की कहानी है । इसी प्रकार सम्राट् कुमारपाल के समकालीन सिद्धपाल के पुत्र कवि विजयपाल ने द्रौपदी की कथा को लेकर २ अंकों में 'द्रौपदी स्वयम्वर' नाटक लिखा । इसमें कवि ने छन्दों को पदशः विभक्त कर अनेक पात्रों से कहलाया है । दक्षिणात्य कवि हस्तिमल ( सन् १२९० ई० ) ने जैन पुराणों से कथावस्तु को लेकर जयकुमार और सुलोचना के स्वयंवर कथानक पर 'विक्रान्त कौरव' ( जिसके नामान्तर मेघेश्वर नाटक एवं सुलोचना नाटक है ) ६ अंकों में बनाया, सीता और राम के कथानक को लेकर ५ अंकों में 'मैथिली कल्याण नाटक ' एवं हनुमान के माता पिता अअंना, पवनञ्जय के कथानक पर ' अञ्जना पवनञ्जय ' तथा चक्रवर्ती भरत की पट्टराणी सुभद्रा की कथा पर सुभद्रा नाटिका तथा अन्य कुछ लिखे नाटक वर्णनात्मक हैं और इनमें नाटकीयतत्वों की न्यूनता है तथापि मल्ल के सरल एवं सुन्दर पद्य, विशेष कर प्रकृतिवर्णनवाले पद्य बड़े ही मनोहर हैं । इसी तरह हरिभद्रसूरि के शिष्य बालचन्द्र ने पौराणिक राजा शिवि की कथा को लेकर एक 'करुणा वज्रायुद्ध'' नाटक लिखा जिसमें वज्रायुध द्वारा बाजपक्षी से कबूतर को बचाने की घटना चित्रित है । यह १३५ छन्दों में एक 6 ४७ 1 यद्यपि नाटक हरित चङ्गुल - Jain Educationa International १. २. 3. यशोविजय ग्रन्थ माला सं. १९. ४ माणिकचन्द्र दिग. जैन ग्रन्थमाला से ये चार नाटक प्रकाशित हो चुके हैं । ५ जैन आत्मानन्द ग्रन्थमाला, भावनगर से प्रकाशित गायकवाड ओ. सिरीज, बडौदा से प्रकाशित । निर्णय सागर प्रेस, बम्बई । For Personal and Private Use Only २२१ 6 " www.jainelibrary.org
SR No.012074
Book TitleYatindrasuri Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size14 MB
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