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________________ विषय खंड संस्कृत में जैनों का काव्य साहित्य २१५ कोई नियत नहीं; पर २४ तीर्थंकरों के २४ चरितों या पुराणों को प्रधानता दी जाती है। किन्तु यहां भी रामायण के कथानक के समान पद्मपुराण एवं पउमचरिउ, महाभारत के समान अपने ही ढंग के हरिवंशपुराण एवं पाण्डवपुराण हैं । ब्राह्मण मान्यता के अनुसार पुराणों के वर्ण्य विषय हैं-सर्ग, प्रतिसर्ग, वंश, मन्वन्तर तथा वंशानुचरित। वैसे ही जैन पुराणों के प्रतिपाद्य विषय हैं :- १ क्षेत्र (तीनलोको का वर्णन) २-काल (तीनों काल) ३ तीर्थ [ सम्यग्दर्शन, ज्ञान, चरित्र] ४- सत्पुरुष तथा ५- उनकी पाप से पुण्य की ओर प्रवृत्ति' आदि । चरित एवं पुराण-लेखक, कवि सत्पुरुष को अपने वर्णन का विषय बनाकर उसके जीवन से सम्बंधित सभी नैतिक एवं धार्मिक भावनाओं का निरूपण करता है ताकि जन-साधारण उनसे लाभांवित हो सके और उसे अपना आदर्श बना कर अपने सामान्य स्तर से ऊपर उठ सके। हमें पुराणों से मालूम होता है कि एक साधारण स्तर का व्यक्ति किन उच्चादों को पालकर कैसे त्याग और तपस्या के बल से उन्नत हो सका है। इसी लिए चरितग्रन्थों का मनुष्यों के चरित्र-निर्माण में बहुत बड़ा हाथ है और उनकी श्रद्धा भी उनके प्रति अगाध देखी जाती है । नयों में जैन धर्म के गंभीर से गंभीर तत्त्वों की चर्चा को दृष्टान्त, प्रतिदृष्टान्त देकर अनेक रोचक कथा - कहानियों से ऐसा प्रिय बनाया गया है कि ये जनसाधारण को शुष्क न मालूम हो सके । इतना ही नहीं, इन पुराणों का महत्त्व एक और बात से बताया जा सकता है, वह यह कि एक ओर तो ये अतिप्राचीन, ऐतिहासिक एवं अर्ध ऐतिहासिक अनुश्रुतियों के भण्डार हैं तो दूसरी ओर अनेक जनप्रिय कथानकों के आकर भी । जैन श्रमणों ने बौद्ध श्रमणों की भांति ही अपने उपदेशों को प्रचालित कथा. कहानियों से सजाया तथा लौकिक महत्त्व की कहानियों को प्रामाणिक कहानियों के रूप में परिवर्तित किया। इस प्रकार भारतीय जनता के कथाओं और कहानियों के प्रति जन्मजात स्नेह का उपयोग जैन चरितकारों ने उन्हें अपने धर्म की ओर अधिक से अधिक आकर्षित करने में किया। एक और महत्व की बात यह है कि जैन पराणों में भारतीय कथानक साहित्य के ऐसे बहुत से रत्न मिलते हैं कि जो दूसरी जगह अप्राप्य हैं । यहां अनेकों अनुश्रुतियों और कथाओं की प्राचीन रोचक परम्पराये भी सुरक्षित मिलती हैं। जैसे कि प्राचीन काल में प्रचलित कृष्ण मार्ग और राम मार्ग की एक धारा जैनों के ‘हरिवंश पुराण' तथा 'पउमचरिउ' से ज्ञात होती है। जैन चरितों एवं पुराणों में त्रेसठ महापुरुषों का जीवनचरित्र दिया गया हैयह बात ऊपर कह चुके है। परन्तु प्रायः ऐसा माना जाता है कि तीर्थकर के नामपरक पुराणों के बीच शेष - चक्रवर्ती, बलदेव, नारायण आदि शलाका पुरुषों का भी १. जिनसेन आदिपुराण, सर्ग २. श्लोक ३५ २. एम. विन्टरनित्स, हिस्ट्री माफ इण्डियन लिटरेचर, भाग २, पृ. ४५४ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012074
Book TitleYatindrasuri Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size14 MB
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