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श्री यतीन्द्रसूरि अभिनंदन ग्रंथ
विविध
वर्णन आ जाता है, अतः २४ तीर्थंकरों के २४ पुराणों को ही प्रधानता दी गई है। तीर्थकरों के ये चरित गन्थ बहुत तो स्वतंत्र रूप में और बहुत संग्रहरूप में मिलते हैं। स्वतंत्ररूप से लिखे गये चरितों की संख्या अनेक हैं। इनमें प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव सोलहवे शांतिनाथ, बावीसवें नेमिनाथ, तेवीसवे पार्श्वनाथ और चौवीसवे महावीर के चरितों पर अनेक ग्रन्थ लिखे गये हैं, क्योंकि इनके जीवन-चरित जैनों में बहुत प्रिय माने गये हैं। इस प्रकार के चरितों में कवि असग (१० वीं श.) के
शांतिनाथ पुराण' और 'महावीर चरित', सूराचार्य (११ वीं श.) का 'नेमिनाथ चरित', देवसूरि का 'शांतिनाथ चरित' (स. १२८२ ) भावदेव का 'पार्श्वनाथ चरित' (सन् १२५५) तथा भट्टारक सकलकीर्ति के अनेक ग्रन्थ प्रसिद्ध हैं। संग्रह रूप से रचित ग्रन्थों में कवि परमेष्ठी के वागर्थसंग्रह ग्रन्थ का नाम सुना जाता है जिसके आधार पर भगवज्जिनसेन और उनके सुयोग्य शिष्य गुणभद्र ने 'आदिपुराण' और 'उत्तरपुराण'' के रूप में 'महापुराण' नामक एक विशाल काव्य ग्रन्थ लिखा । इसमें ६३ महापुरुषोंका चरित दिया है। आचार्य मल्लिषेण (सं. ११०४) ने भी संग्रह रूप में एक 'महापुराण' लिखा । इस प्रकार के ग्रन्थों में आ० हेमचन्द्र ( १२ वीं शती. ) का 'त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित' विशेषरूप से उल्लेखनीय है । पीछे अनकों जैनाचार्यों ने 'चतुर्विंशति पुराण' नाम से ग्रन्थों की रचना की तथा महत्त्वपूर्ण पुराणों के संक्षिप्त संस्करण करके संग्रहरूप में 'पुराणसारसंग्रह' नाम से अनेक ग्रन्थ लिखे ।
इन चरितों और पुराणों में हिन्दुओं के चिरपरिचित तथा जैनोंद्वारा शलाकापुरुष रूपसे मान्य ऋषभ, भरत, सगर, राम, लक्ष्मण, रावण, कृष्ण, बलराम, जरासिन्ध आदि का यथायोग्य चरित्र-चित्रण मिलता है ।।
तीर्थकरों के पुराणों के अतिरिक्त जैन विद्वानों ने भारतीय जनता की अतिशय प्रिय राम-कथा एवं महाभारत की कथाओं को महत्त्व देकर उन पर भी स्वतन्त्र रूप से ग्रन्थ लिखे हैं। इनमें रविषेण का 'पद्मपुराण' या पद्मचरित सन् ६७९ ई में रचा गया था । प्राकृत और अपभ्रंश भाषाओं में इस कथा पर इससे पूर्व और समकालीन अन्य ग्रन्थ भी लिखे गये है । पीछे संस्कृत में राम-कथा का वर्णन गुणभद्र अपने 'उत्तरपुराण' के ६५ वे पर्व में और आ० हेमचन्द्र ने 'त्रिषष्ठिशलाका पुरुषचरित' के ७ वे पर्व में किया है जिसका नामान्तर 'जैन रामायण' भी है ।
पीछे १६ वीं शताब्दी में देवविजयगणि ने 'रामचरित' तथा १६-१७ वीं शताब्दी में भट्टारक सोमसेन, भट्टारक धर्मकीर्ति और भट्टारक चन्द्रकीर्ति ने 'पद्मपुराण' नामक कई ग्रन्थों की रचना की। इसी तरह महाभारत की कथा पर पुन्नाटसंघीय जिनसेन ने
१. भारतीय ज्ञान पीठ, बनारस से प्रकाशित २. गुलाबचन्द्र चौधरी द्वारा सम्पादित - पुराणमारसंग्रहकी भूमिका [ भा. ज्ञानपीठ, बनारस ]. ३. माणिकचन्द्र दिग. जैन ग्रन्थमाला, बम्बई से प्रकाशित
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