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श्री यतीन्द्रसूरि अभिनंदन ग्रंथ
विविध
मध्यकालीन भारत में जिस लगन और प्रेरणा के साथ जैन विद्वानों ने संस्कृत साहित्य की सेवा की है वह इतिहास के पृष्ठों पर स्वर्णाक्षरों से सदा अङ्कित रहेगा। इस यग में भारतीय ज्ञान-विज्ञान का ऐसा कोई अंग शेष नहीं रहा जिसमें कि जैन विद्वानों ने अपनी मौलिक कृतियां संस्कृत में न लिखी हों। और पीछे देशकाल की परिस्थितियों के अनुरूप इन विद्वानों ने संस्कृत साहित्य की श्रीवृद्धि में वराबर योगदान किया है।
नीचे लिखी पंक्तियों में हम जैनों के संस्कृत भाषा में लिखे गये विशाल काव्यसाहित्य का दिग्दर्शन करेंगे। इसके प्रधान अंगभूत हैं - चरित एवं पुराण, कथा-साहित्य, प्रबन्ध-साहित्य, ललित साहित्य, दृश्य-श्रव्य काव्य, समस्यापूर्ति, स्तोत्र, सुभाषित एवं अभिलेख साहित्य । चरित एवं पुराण-साहित्य :___ जैनों के चरित और कथासाहित्य का मूल उद्गम आगम ग्रन्थ और उनके भाष्य, चणि एवं टीकाएं ही हैं। इन्हीं के आधार पर तथा प्रचलित भारतीय साहित्य के आधार पर जैन कवियों ने संस्कृत में इस विशाल साहित्य की सष्टि की है। चरित एवं पराण शब्द से हमारा आशय उस विपुल साहित्य से है जिसमें प्रागैतिहासिक काल के पुरातन ६३ महापुरुषों (२४ तीर्थकर, १२ चक्रवर्ती ९ नारायण, .९ प्रतिनारायण एवं ९ बलदेव) का वर्णन है । पुरातन पुरुषों के चरित के लिए. दिग० सम्प्रदाय में पुराण एवं चरित ये दोनों शब्द बराबर प्रयुक्त हैं - जैसे हरिवंश-पुराण और हरिवंशचरित. पद्मपुराण और पद्मचरित; परन्तु श्वेताम्बर साहित्य में केवल चरित शब्द का प्रयोग दिखता है - जैसे त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित, पाण्डवचरित, महावीरचरित आदि । चरित शब्द पुराण की अपेक्षा हमें एक विस्तृत साहित्य का बोध कराता है । इसमें महापुरुषों के व्यक्तिगत चरित तो है ही; पर इसके सिवाय अनेकों सन्तों और साधूओं के चरित भी अन्तर्भूत होते हैं । पुराण शब्द से अभिप्रेत है पुरातन पुरुषों का चरित' ही।
ब्राह्मण साहित्य की भांति दिग. जैन साहित्य में 'पुराण' शब्द का प्रयोग 'इतिहास शब्द' के साथ आता है तथा कभी-कभी पुराण और इतिहास समानार्थक माने गये हैं; परन्तु आज जिस वैज्ञानिक पद्धति से इतिहास का निर्माण हो रहा है, उस कसौटी में ये पुराण इतिहास नहीं कहे जा सकते; भले ही इतिहास के निर्माण में इनका एकांश योगदान हो। ब्राह्मण सम्प्रदाय के साहित्य में पुराणों का अपने ढंग का विकास है। वहाँ १८ पुराण एवं १८ उपपुराण माने जाते हैं तथा इनके अतिरिक्त भी और पुराण है; परन्तु जैनियों का यह साहित्य उनसे भी निराला है। यहां संख्या तो
१ 'पुरातनं पुराणं स्याद्' भगवज्जिन सेन. २ दामनन्दि 'पुराणसारसंग्रह' आदिनाथचरित, इलोक २
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