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विषय खंड
अंग विज्जा
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दिव्य,
महारथ्या, उस्साहिया [अज्ञात, संभवतः परकोटे के पीछे की ऊंची सड़क], प्रासाद, गौपुर, अट्टालक, पकंठा (प्रकंठी नामक बुर्ज), तोरण, द्वार, पर्वत, पासरूल ( अज्ञात), थूम [स्तूप] एलूय [ एडूक ], प्रणाली, प्रवात [= प्रपात गड्ढा], वप्प, तडाग, दहफलिहा (हृदयरेखा), वय [ब्रज-गौकुल अथवा मार्ग या रास्ता )।
नगरबाह्य स्थानों की सूची इस प्रकार है- ध्वज, तोरण, देवागार, वुक्ख (वृक्ष), पर्वत, माल, थंम, एलुग [ द्वार की लड़की], पाली (तलाव का बांध ), तडाग, चउक्क, वप्र, आराम, श्मशान, वच्चभूमि (वर्चभूमि), मंडलभूमि, प्रपा, नदी, देवायतन, दडवण, (दग्धवन ), उठ्ठियपट्टग (ऊँचा स्थान ), जण्णवाड़ (यज्ञवाटक ), संगामभूमि (संग्रामभूमि) ।
५८ वां चिन्तित अध्याय है। जैन धर्म में जीव - अजीव के विचार का विषय बहुत विस्तार से आता है। यहां धार्मिक दृष्टिकोण से उस संबंध में विचार न करके केवल कुछ सूचिओं की ओर ध्यान दिलाना इष्ट है। जीव, अजीव - इनमें जीव दो प्रकार का है- एक संसारी और दूसरा सिद्ध । संसारी जीव के सम्बन्ध में याचनविवृद्धि, भोग, चेष्टा, आचार-विचार, चूडाकर्म (चोल), उपनयन, तिथि (पर्व विशेष), उत्सव, समाज, यज्ञ आदि विशेष आयोजनों का उल्लेख है। संसार चार प्रकार के होते हैं मानुष, तिर्थच, नारकी। देवताओं की सूची में निम्नलिखित नाम उल्लेखनीय हैंवैश्रवण, विष्णु, रूद्र, शिव, कुमार, स्कंद, विशाख [इन तीन नामों का पृथक उल्लेख, कुशानकाल की मुद्राओं पर भी पाया जाता है ] । ब्रह्मा, बलदेव, वासुदेव, प्रद्युम्न, पर्वत, नाग, सुपर्ण, नदी, अलणा [एक मातृ देवी], अज्जा, अइरानी (पृ० ६९, २०४ पर भी यह नाम आचुका है ), माडपा [मातृका], सउणी (शकुनी, संभवतः सुपर्णी देवी ), एकाणंसा [एकानंसा नामक देवी जो कृष्ण और बलराम की बहिन मानी जाती है ]; सिरी [श्री लक्ष्मी], बुद्धी, मेधा, कित्ती [कीर्ति ], सरस्वती, नाग, नागी, राक्षस-राक्षसी, असुर, असुरकन्या, गन्धर्व, गन्धर्वा, किंपुरुष - किंपुरुषकन्या, जक्ख-जक्खी, अप्सरा, गिरीकुमारी, समुद्र, समुद्रकुमारी, द्वीपकुमार - दीपकुमारी, चन्द्र, आदित्य, ग्रह, नक्षत्र, तारागण, वातकन्या, यम, वरुण, सोम, इंद्र, पृथ्वी, दिशाकुमारी, पुरदेवता, वास्तुदेवता, वर्चदेवता [दुर्गन्धित, स्थान के अधिष्ठातृ देवता ), सुसाणदेवता [श्मशानतदेवता]-पितृदेवता, चारण, विद्याधरी, विज्जादेवता, महर्षि आदि । इस सूची में कई बाते ध्यान देने योग्य हैं । एक तो देवताओं की यह सूची जैनधर्म की मान्यताओं की सीमा में संकुचित न रहकर लोक से संगृहीत की गई थी। अतएवं इसमें उन अनेक देव-देविओं के नाम आगये हैं जिनकी पूजापरंपरा लोक में प्रचलित थी। इसमें एक ओर तो प्रायः वे सब नाम आगये हैं जिनकी मान्यता मह नामक उत्सवों के रूप में पूर्वकाल से चली आती थी जैसे वेस्समण मह, रुहमह, सिवमह, नदीमह, बलदेवमह, वासुदेवमह, नागमह, जक्खमह. पव्वनमह, समुद्रमह, चंद्रमह, आदित्यमह, इन्द्रमह आदि । दूसरे कुछ वैदिक देवता जैसे वरुण, सोम, यम, कुछ विशेष रूप से जैन देवता जैसे द्वीपकुमारी, दिशाकुमारी, अग्नि
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