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श्री यतीन्द्रसूरि अभिनंदन ग्रंथ
विविध
है। मनुष्यवर्ग में प्रेष्य, आर्य, ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र आदि का उल्लेख है । इनमें भी छोटे-बड़े अनेक भेद होते थे । सम्बन्ध की दृष्टि से भ्राता, वयस्य, भगिनी, श्याल, पति, देवर, ज्येष्ठ, मातुलपुत्र, भगिनीपति, भ्रातृव्य, मातृश्वसा, पितृश्वसा आदि के नाम हैं । अजीव पदार्थों की सूची में प्राणयोनि के अन्तर्गत दूध, दही, तक, कूचिय (कूर्चिक रबड़ी), आमधित (= आमथित= मट्ठा या दृध में मथी हुई कोई वस्तु), गुड़दधि, रसालादधि, मंथु (सं. मंथ) परमाण्ण (परमान, खीर), दधिताव (छोंकी हुई दही या कढी), तकोदण (तक्रौदन), भतिकूरक (विशेष प्रकार का भात, पुलाव) इत्यादि. मूलयोनिगत आहार की सूची में शाली, व्रीही, कोद्रव, कंगू, रालक (एक प्रकार की कंगनी), वरक, जौ, गेहूँ, मास, मूंग, अलसंदक (धान्य विशेष) चना, णिप्फावा ( गुज० वाल, सेमका बीज), कुलत्था (कुलथी), चणविका (= चणकिका - चने से मिलता हुआ अन्न, प्राकृत चणइया, ठाणांग सूत्र ५-३), मसूर, तिल, अलसी, कुसुम्भ, सावां ।
__ इस प्रकरण में कुछ प्राचीन मद्यों के नाम भी गिनाये हैं - जसे पसण्णा (सं. प्रसन्ना नामक चावल से बना मद्य, काशिका ५,४,१४ संभवतः श्वेत सुरा या अवदातिका) णिट्टिता (=निष्ठिता, मद्यविशेष महंगी शराब, संभवतः द्राक्षा से बनी हुई ), मधुकर (महुवेकामद्य) आसव, जंगल (ईख की मदिरा), मधुरमेरक (मधुरसेरक पाठान्तर अशुद्ध है । वस्तुतः यह वही है जिसे संस्कृत में मधुमैरेय कहा गया है, काशिका
रा६०), अरिष्ठ, अट्ठकालिक (इसका शुद्ध पाठ अरिटुकालिका था जैसा कुछ प्रतियों में है। कालिका एक प्रकार की सुरा होती है, काशिका ५४।३, अर्थशास्त्र २२५), आसवासव (पुराना तेज मद्य), सुरा, कुसुकुंडी (एक प्रकार की श्वेत मधुर सुरा), जयकालिका ।
धातु के बने आभरणों में सुवर्ण, रुप्प, तांबा, हारकूट, अपु (रांगा), सीसा, काललोह, वट्टलोह, सेल, मत्तिका का उल्लेख है। धातु निर्मित वस्त्रों में सुवर्णपट्ट (किमखाव), सुवर्ण खधित (जरी का काम) और लौहजालिका (पृ. २२१) । इसी प्रसंग में तीन सूचियां रोचक है - घर, नगर और नगर के बाहर के भाग के विभिन्न स्थानों की। घर के भीतर अरंजर, ऊष्ट्रिका, पल्लु [सं. पल्य - धान्य भरने का बड़ा कोठा], कुडय, किजर, बोखली, घट, खड्डुभाजन (खोदकर गाडा हुआ पात्र ), पेलित्त (पेलिका संभवतः पेटिका), भाल (घर का ऊपरी तल), वातपाण [गवाक्ष], चर्मकोष (चमडे का थैला), बिल, नाली, थंम, अंतरिया ( अंत के कोने में बनी हुई कोठी या भंडरिया), पस्संतरिया (पार्श्वभाग में बनी हई भंडरिया), कोट्ठागार, भत्तघर, वासघर, अरस्स (आदर्श भवन या सीसमहल), पडिकम्मघर (प्रतिक्रमणगृह), असोयवणिया [अशोक वनिका नामक गृहोद्यान], आपुपछ, पणाली, उदकचार, पञ्चाडक (वर्चस्थान), अरिट्ठागहण (कोपगृह जैसा स्थान ), चित्तगिह (चित्रगृह), सिरिगिह (श्रीगृह ), अग्निहोत्रगृह, स्नानगृह, पुस्सघर, दासीघर, वेसण ।
नगर के विभिन्न भागों की सूची इस प्रकार है - अन्तःपुर या राजप्रासाद, भूमंत्तर [भूम्यंतर -संभवतः भूमिगृह], सिंघाडग (शृंगारक), चउक्क (चौक), राजपथ,
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