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________________ २०० श्री यतीन्द्रसूरि अभिनंदन ग्रंथ विविध देवता के साथ अग्निघर और नागदेता के साथ नागघर का उल्लेख विशेष ध्यान देने योग्य है । नागघर या नागभवन या नागस्थान, नागदेवता के मन्दिर थे जिनकी मान्यता कुशाणकाल में विशेष रूप से प्रचलित थी । मथुरा के शिलालेखों में नागदेवता और उनके स्थानों का विशेष वर्णन आता है । एक प्रसिद्ध नागभवन राजगृह में मणियार नाग का स्थान था जिसकी खुदाई में मूर्ति और लेख प्राप्त हुए हैं । स्कंद, विशाख, कुमार और महासेन ये चार भाई कहलाते थे जो आगे चलकर एक में मिल गये और पर्यायवाची रूप में आने लगे; पर हुविष्क के सिक्कों पर एवं काश्यप संहिता में इनका अलग - अलग उल्लेख है, जैसा कि उनमें से तीन का यहाँ भी उल्लेख है । श्री लक्ष्मी की पूजा तो शुंगकाल से बराबर चली आती थी और उसकी अनेक मूत्तियां भी पाई गई हैं । किन्तु मेधा और बुद्धी का देवता रूप में उल्लेख यहां नया है। मनुष्य योनि के सम्बन्ध में पहले स्त्री, पुरुष और नपुंसक - इन तीन भेदों का विचार किया गया है और फिर पिता, माता आदि संबंधियों की सूची दी है। तदनन्तर पक्षी, चतुष्पद, परिसर्प, जलचर, कीट, पतंग, पुष्प, फल, लता, धान्य, तैल, । वस्त्र, धातु, वर्ण, आभरण आदि की विस्तृत सूचियां दी गई हैं जिनसे तत्कालीन संस्कृति के विषय में उपयोगी सूचना प्राप्त होती है। जलचर जीवों में कुछ ऐसे नाम हैं जिनका अंकन मथुरा की जैन कला में विशेष रूप में पाया जाता है। इन्हें सामुद्रिक अभिप्राय (marine matifs) कहा जाता है। जैसे हथिमच्छा (हाथी का शरीर और मछली की पूछ मिली हुई, जिसे जलेभ या जलहस्ति भी कहा जाता है), मगमच्छा (मृगमत्स्य), गोमच्छा (गौमत्स्य ), अस्लमच्छा (आधी अश्व की, आधी मत्स्य की), नरमत्स्य (पूर्वकाय मनुष्य का और अधः काय मत्स्य का ) (अं० triton )। मछलियों की सूची में कुछ नाम विशेष ध्यान देने योग्य हैं । जैसे सकुचिका (सकची मच्छ) चम्मिरा (चर्मज, मानसोल्लास), घोहणु, वइरमच्छ ( वज्रमच्छ ), तिमितिमिंगल, वालीण, सुंसुमार, कच्छभमगर, गद्दभ कप्पमाण' (sharlk) रोहित, पिचक, (पिच्छक, मानसोल्लास), पलमीण (नलमीन, अं0 eeL.), चम्मिराज, कल्लाडक, सीकुन्डी, उप्पातिक, इंचिका, कुंडुकालक, सित्त मच्छक । (पृ०२२८) वृक्षों की सूची में चार प्रकार के वृक्ष कहे गये हैं-पुष्पशाली, पुष्पफलशाली, फलशाली, न पुष्पशाली न फलशाली। पुष्पशाली तीन प्रकार के हैं -प्रत्येक पुष्प, गुलुक पुष्प, मंजरी । एक - एक फल अलग लगे तो प्रत्येक पुष्प, फूलों के गुच्छे हों तो गुलुकपुष्प और पुष्पों के लम्बे-लम्बे झुग्गे लगे तो मंजरी कही जाती है । रंगों की दृष्टि से पुष्पों के पांच प्रकार हैं - श्वेत, रक्त, पीत, नील और कृष्ण पुष्प । गंध की दृष्टि से पुष्पों के तीन प्रकार हैं-सुगंध पुष्प, दुर्गन्ध पुष्प, अत्यंतगंध पुष्प । फलदार वृक्ष फलों के परिमाण की दृष्टि से चार वर्गों में बांटे गये हैं - बहुत बड़े फलवाले [कायवंत फल,] जैसे कटहल, तुम्बी, कुष्मांड, ज्झिमकाय (मझले आकार के फलवाले जैसे कैथ, बेल, बिचले (मज्झिमाणांतर) फलवाले जेसे आम, उदुम्बर Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012074
Book TitleYatindrasuri Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size14 MB
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