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विषय खंड
अंग विज्जा
दिखाई पड़े उनके आधार पर फल का कथन करें । जैसे- बलीवर्द, अश्व, ऊष्ट्र, गर्दभ, शुक, मदनशलाका या मैना, कपि, मोर ये द्वारकोष्ठक या अलिन्द में दिखाई पड़े तो शुभ समझकर घर में प्रवेश करना चाहिए ब्रह्मस्थल में [संभवतः देवस्थान-पूजास्थान, अरंजर या जहां जल का बड़ा पात्र रखा जाता हो,-उव्वर [धर्मस्थान या जहाँ चल या भट्टी हो, उपस्थान शाला में बैठने पर, उलूखल शाला में या कपाट या द्वार के कोने में, आसन दिये जाने पर और अंजलिकर्म द्वारा स्वागत किये जाने पर और ऊपर महानस या रसोई घर में या मकान के निक्कुड अर्थात् उद्यान प्रदेश में यदि अंगविद्याचार्य वस्तुओं को अस्त-व्यस्त या टूटी-फूटी या गिरी-पड़ी देखे तो बाहर से सम्बन्ध रखनेवाली वस्तुओं की हानि बतानी चाहिए । रसोई घर में कंबा (करछुल या दवी) को गिरी पड़ी देखे और मल्लक या मिट्टी के शराव आदि की हंडी फैली हुई (आसखि =आकीर्ण) देखे तो कुल-भंग का फल कहना चाहिए । अथवा अपने दासकर्मकरों से अर्थों की अप्राप्ति या कष्टों की संभावना कहनी चाहिए। तुष, पासु, अंगार, भग्नवृक्ष से हानि और कुल - भंग सूचित होता है । लकड़ी का रोगन उखड़ गया हो और संधि या जोड़ यदि ढीले हो तो कुटुम्ब की हानि और अर्थ की अस्थिरता समझनी चाहिए । यदि द्वार की सन्धि शिथिल हो और उसकी सिरदल [उत्तरंबर उतरंगाः गुजराती में देहली या नीचे की लकड़ी को अभी तक उम्बर कहते हैं ] भग्न हो तो इष्ट वस्तुकी हानि होगी। यदि द्वारकपाट खुला हुआ हो तो दुःख से अर्जित धन चला जाता है। द्वार के नीचे की देहली और ऊपर का उत्तरंगा (अधरुत्तसम्मिर) टूटे या निकले हुए हों तो घर में कलेश होगा। सिल, वेल्लव (वेलु या बांस) और वाक-छाल में कोठे में रक्खे हुए जब खराब हो जाय या कीड़े दिखाई पड़े तो व्याधि समझनी चाहिए। कोठे में बांधा हुआ एलक --भेड़ा, अश्व, पक्षी यदि कुछ विपरीत निमित्त प्रकट करे तो उससे भी हानि सूचित होती है। यदि घर के भीतर बालक धरती में लोटते हुए मूत्र, पुरीस में सने दिखाई पड़े तो हानि और इसके विपरीत यदि वे अलंकृत दिखाई पड़े तो वृद्धि जाननी चाहिए। आंगन में लगे हुए पुष्प और फलों को आंगन में भीतर लाया जाता देखा जाय तो वृद्धि सूचित होती है। ऐसे ही आंगन में भाजन या वर्तनों को अखंड और परिपूर्ण देखा जाय तो आय - लाभ सिद्ध होता है। आंगन के आधार पर कई प्रकार के फलों का निर्देश किया गया है। आंगन में यदि पोती (वस्त्र) और णतक (एक प्रकार का वस्त्र, पाइयसद्दमहण्णवों) बीखरे हुए दिखलाई पड़े और आसंदक (बैठने की चौकी) आदि भग्न हों तो हानि और रोग सूचित होता है। यदि आंगन में अलंकृत और हृष्ट नर-नारी दिखाई दे तो संप्रीति और लाभ, यदि ऋद्ध दिखाई दे तो हानि सूचित होती है। यदि भरा हुआ अरंजर (जल का बड़ा घड़ा) अकारण टूट जाय, अथवा कौवे या कुत्ते उसे भ्रष्ट कर दें तो गृहस्वामी का नाश सूचित होता है। इसी प्रकार अलिंजर अर्थात् जल का घड़ा और उसकी घटमंचिका (पेढिया) के नये-पुराने पन से भी विभिन्न विचार किया जाता है। श्रमण के प्रदत्त आसन, सिद्धि अन्न से भी निमित्त सूचित होते हैं। ओदन में कीट, केश, तृण आदि से भी अशुभ सूचित होता है। श्रमण के घर आने पर उससे जिस भाव और मुह से
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