SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 303
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री यतीन्द्रसूरि अभिनंदन ग्रंथ बिविध ४३ वें अध्याय में प्रवास या यात्रा का विचार है। यात्रा में उपानह, छत्र या सन्तू, कत्तरिया (छुरी), कुंडिका, ओखली आवश्यक है । यात्री मार्ग में प्रपा, नदी, पर्वत, तडाग, ग्राम, नगर, जनपद, पट्टन, सन्निवेश आदि में होता हुआ जाता था। विविध रूप-रस-गंध-स्पर्श के आधार पर यात्रा का शुभाशुभ कहा जाता था और लाभअलाभ, जीवन, मरण, सुख, दुःख, सुकाल, दुष्काल, भय, अभय आदि फल उपलब्ध होते हैं । (पृ० १९१-१९२) ४४ वे अध्याय में प्रवास के उचित समय, दिशा, अवधि और गन्तव्य स्थान आदि के सम्बन्ध में विचार है । (१० १९२-९३) ४५ वे प्रवेशाध्याय नाम प्रकरण में प्रवासी यात्री के घर लौटने का विचार है। भुक्त, पीत स्थिति, कर्णतैल, अभ्यंग, हरिताल, हिंगुल, मैनसील, अंजन सभालभण (विलेपन), अलवनक, कलंजक, वण्णक, चुण्णक, अंगराग, उस्सिधण (सुंगधी सूंघना), मक्खण (मुक्षण-मालिश), अष्मंग, उच्छन्दण (संभवतः आच्छादन), उव्वट्टण (उद्धर्तन उबटन), पघंस (प्रघर्षण द्वारा तैयार सामग्री), माल्य, सुरभिजोगसंविधाणक [विविध गन्धयुक्त ], आभरण और विविध भूषणों की संजोयणा [अर्थात् सँजोना] एवं अलंकारों का मण्डन - इनके आधार पर प्रवासी के आगमन की आशा होती थी। इसी प्रकार शिविका, रथ, यान, जुग्ग, कट्ठमुह, गिल्ली, संदण [ स्पंदन ], सकट [ शकट], शकटी और विविध वाहन, हय, गज, बलीवर्द, करभ, अश्व नर, खर, अजा, एडा नर, मरुत दिशा, व्रज, प्रासाद, विमान, शयन आदि पर अधिरोहण, ध्वजा, तोरण, गोपुर, अट्टालक, पलाकासमारोहण, उच्छ्रयण के आधार पर थी, विचार किया जाता था । दूध, दधि, घी, नवनीत, तेल, गुड़, लवण, मधु आदि दिखाई दे तो आगमन होने की आशा थी। ऐसे ही पृथ्वी, उदक, अग्नि, वायु, पुष्प, धान्य, रत्न आदि से भी आगमन सूचित होता था । अंकुर, पुरोह, पत्र, किसलय, प्रवाल, तृण, काष्ट एवं ओखली पिठर, दविउलंक (संभवतः द्रवका उदंचन) रस, दर्वी, छत्र, उपानह, पाउगा (पादुका) उष्मुभंड [ उर्ध्वभांड संभवतः कमण्डलु], उभिखण [अज्ञात ] फणख [कंघा] पसाणग [प्रसाधनक] कुप्वट्ठ [संभवतः कुप्यपट्ट लंगोट], वणपेलिका (वर्णपेटिका--भंगारदानी). विवट्टणग-अंजणी (सुरमेदानी और सलाई), आदसंग [दर्पण], सरगपरिभोयण [मद्य-आहार], वाघुज्जोपकरण [वाधुक्य-विवाह - विवाह की सामग्री], माल्य - इन पदार्थों के आधार पर आगमन की संभावना सूचित होती थी। फिर इसी प्रसंग में यह बताया गया है कि कौन सा लक्षण होने पर फिर वस्तु का प्रवेश या आगमन सूचित होता है। जैसे चतुरस्र चित्र सारवंत वस्तु दिखाई पड़े तो कार्षापण, रक्तपीत सारवान वस्तु के दर्शन से सुवर्ण, श्वेत सारवंत से चांदी, शुक्ल शीतल से मुक्ता, धन सारवंत और प्रभायुक्त वस्तु से मणि का आगमन सूचित होता है। ऐसे ही नाना भांति की स्त्रियों के आगमन के निमित्त बताये गये हैं - [पृ. १९३ - ४] । ४६ वें प्रवेसण अध्याय में गृह प्रवेश संबंधी शुभाशुभ का विचार किया गया है । अंगचिंतक को उचित है कि घर में प्रवेश करते समय जो शुभ, अशुभ वस्तु Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012074
Book TitleYatindrasuri Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy