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श्री यतीन्द्र सूरि अभिनंदन ग्रंथ
विविध
अधिकारी), आसवारिय (घुड़सवार जैसा सामान्य अधिकारी जिसे पउम चरिय ६८७ में आसवार कहा गया हैं ), णायक, अभंतरावचर, अब्भाकारिय (अभ्यागारिक) भाण्डागारिय, सीसारक्ख, पडिहारक, सूत, महाणसिक, मज्जघरिय पागियघरिय, हत्थाधियक्ख (हस्ताध्यक्ष), महामत्त (महामात्र ), हथिमेठ, अस्साधियक्ख, अस्सारोध, अस्सबन्धक, छागालिक, गोपाल, महिसीपाल, उट्टपाल, मगलुद्धग (मृगलुब्धक), ओरम्भिक, (औरभ्रिक), अहिनिप (संभवतः अहितुंडिक ७ या गारुडिक) । राजपुरुषों में विशेष रूप से इनका परिगणन है- अस्लातियक्ख, हत्थाधियक्ख, हत्थारोह (हस्त्यारोह ), हस्थिमहामत्तो, गोसंखी (जिसे पाणिनि और महाभारत में गोसंख्य कहा गया है ), गजाधिति, भाण्डागारिक, कोषरक्षक, सव्वाधिकत (सर्वाधिकृत), लेखक (सर्वलिपिओं का ज्ञाता) गणक, पुरोहित, संवच्छर (सांवत्सरिक), दाराधिकत (द्वारपाल, दौवारिक), बलगणक, सेनापति, अब्भागारिक, गणिकाखंसक, वरिसधर, वत्थधिगत (वस्त्राधिगत, तोशाखाने का अध्यक्ष) णगरगुत्तिण, (नगरगुप्तिक, नगरगुप्ति या पुर - रक्षा का अधिकारी), दूत, जइणक (जविनक या जंघाकर जो सौ-सौ योजन तक संदेश पहुंचाते या पत्रवाहक का काम करते थे), पसेणकारक, पतिहारक, तरपअट्ठ (तार प्रवृत्त), णावाधिगत, तित्थपाल, पाणियघरिय ण्हाणघरिय, सुराधरित, कट्ठाधिकत (काष्ठाधिकृत) तणाधिकत, (तृणाधिकृत) बीजपाल, ओपसेजिक (औपशाय्यिक-शय्यापाल, राजा की शय्या का रक्षक), सीसारक्ख (मुख्य अंगरक्षक), आरामाधिगत, नगररक्ख, अब्भागारिय, अशोकवणिकापाल, वाणाधिगत, आभरणाधिगत । राज्य के अधिकारियों की इस सूची के कितने ही नाम पहले भी आचुके हैं । कुछ नये भी हैं । प्राचीन भारतीय शासन की दृष्टि से यह सामग्री अत्यन्त उपयोगी कही जा सकती है। प्रायः ये ही अधिकारी राजमहलों में और शासन में बहुत बाद तक बने रहे ।
इसके बाद सामान्य पेशों की एक बड़ी सूची दी गई हैं, जैसे ववहारि (व्यापारी) उदकवड्दृकि (नाव या जहाज बनानेवाला), मच्छबन्ध, नाविक, बाहुविक (डाँड चलानेवाले), सुवण्णकार, अलित्तकार, (अल्ता बनानेवाला), रत्तरज्जक (लाल रंग की रंगाई का विशेषज्ञ), देवड (देव - प्रतिमा विक्रेता), उण्णवाणिय, सुत्तवाणिय, जतुकार, चित्तकार (चित्रकार), चित्तवाजी (चित्रवाद्य जानने वाला) तटकार (ठठेरा), सुद्धरजक, लोहकार, सीत पेट्टक (संभवतः दूध--दहि के भांडों को बरफ में लपेट कर रखनेवाला) कुंभकार, मणिकार, संखकार, कंसकार, पट्टकार (रेशमी वस्त्र बनाने वाला) दुस्सिक (दुष्य नामक वस्त्र बनाने वाला), रजक, कोसेज्ज [कौशेय या रेशमी वस्त्र बनुनेवाला], वाग [वल्कल बनाने वाला ], ओरम्भिक, महिसघातक, उस्सणिकामत्त [ ऊख पेरने वाले ] छत्तकारक वत्थोपजीवी, फलवाणिय, मूलवाणिय, धान्यवाणिय, ओदनिक, मंसवाणिज्ज, कम्मासवाणिज्ज (कम्मास या घूघरी बेचनेवाला) तप्पणवाणिज्ज (जौ आदिके सत्तू बेचनेवाला अइप्पण (भुजियाके सत्तू बेचनेवाला) लोणवाणिज्ज, आपूपिक, खज्जकारक (खाजा बनानेवाला, इससे सूचित होता है, कि खाजा नामक मिठाई कुशाणकाल में भी बनने लगी थी), पाणिक ( हरी-साग-सब्जी बेचनेवाला) फलवाणियक, सिंगबेर या अदरक बेचनेवाला।
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