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विषय खंड
अंग विज्जा
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मूसिका, वाणिज, मगधा, मधुरा, प्रातिका, फग्गुणी, रेवती, अस्सयौ ( अश्वयुक), अज्जमा [ अर्यमन् ], अश्विनौ, विसाहा, आसाढ़ा, धणिट्ठा, ईदगिरि । सर्व गुरु नामों की सूची में रोहत्रात, पुस्सत्रात, फग्गुत्रात, हत्थत्रात, अस्सत्रात । उपान्त्य लघुनामों में रिघसिल ( पाठा० रिषितिल ) श्रवणिल, पृथिविल – इन नामों में स्पष्ट ही उत्तरपद का लोप करने के बाद इल प्रत्यय जोड़ा गया है जिसका विधान अष्टाध्यायी में आया है ( घनिलचौ, ५२३२७९), इल वाले नाम सांची के लेखों में बहुत मिलते हैं । अगिल ( अग्निदत्त ), सातिल ( स्वातिदत्त), नागिल [ नागदत्त ] यखिल [यक्षदत्त ] बुधिल ( बुद्धदत्त ) । ससित्रात, पितृत्रात, भवत्रात, वसुत्रात, अजुत्रात, यमत्रात - - ये प्रथमलघु अक्षरवाले नाम थे । शिवदत्त, पितृदत्त, भवदत्त, वसुदत्त, अजुदत्त, यमदत्त उपान्त्य गुरुनामों के उदाहरण हैं । अंगविजा के नामों का गुच्छा इस विषय की मूल्यवान् सामग्री प्रस्तुत करता है । आगे चलकर गुप्तकाल में जब शुद्ध संस्कृत भाषा का पुनः प्रचार हुआ तब मनुष्य नाम भी एकदम संस्कृत के सांचे में ढल गये । अंगविज्जा में उनकी वानगी नहीं मिलती । [ पृ० १५८ ]
सत्ताइसवें अध्याय का नाम ठाणज्झाय है । इसमें ठाण अर्थात् स्थान या सरकारी अधिकारियों के पदों की सूची है । राज्याधिकारियों की यह सूची इस प्रकार है - राजा, अमच्च, नायक, आसनस्थ ( संभवतः व्यवहारासन का अधिकारी), भांडागारिक, अभ्यागारिक [ संभवतः अन्तःपुर का अधिकारी जिसे दौवारिक या गृहचिन्तक भी कहते थे ], महाणसिक [ प्रधान रसोइया ], गजाध्यक्ष, मज्जघरिय, [ मद्यगृहक ], पाणीघरिय [जिसे बाण ने जलकर्मान्तिक लिखा है ], णावाधिक्ख [नावाध्यक्ष ], सुवर्णाध्यक्ष, हस्थिअधिगत, अस्सअधिगत, योग्गायरिय [ योग्याचार्य अर्थात् योग्या या शास्त्राभ्यास कराने वाला ], गोवयक्ख ] गवाध्यक्ष ], पडिहार (प्रतिहार ) गणिकखंस ( गणिकाओं के ऊपर वेश का अधिकारी ), बलगणक [ सेना में आर्थिक हिसाब रखने वाला ], वरिसधर ( वर्षधर या अंतःपुर में कार्य करने वाला ], वत्थुपारिसद ( वास्तुपार्षद), आरामपाल [ उद्यानपाल ], पच्चंतपाल [ प्रत्यंत या सीमाप्रदेश का अधिकारी], दूत, सन्धिपाल [ सान्धिविग्रहिक ], सीसारक्ख [राजा का सब से निकट का अंगरक्षक ], पतिआरक्ख [ राजा का आरक्षक ], सुंकसालिअ [ शौल्कशालिक या चुंगीघर का अधिकारी ], रज्जक, पधवावट ( पथव्यापृत), अडविक [आटविक ] णगराधिक्ख [ नगराध्यक्ष ] सुसाणवावट ( श्मशानव्यापृत) सूणावावर, चारक[गुप्तचर अधिकारी ], फलाधियक्ख, पुष्काधियक्ख, पुरोहित, आयुधाकारिक, सेणापति, कोट्ठागारिक [ कोष्ठागारिक ] [ पृ० १५९]
अट्ठाईसवे अध्याय में उस समय के पेशेवर लोगों की लम्बी सूची भाई है । आरंभ में पांच प्रकार के कर्म या पेशे कहे हैं जैसे रायपुरीस [ राजपुरुष ], ववहार ( व्यापार वाणिज्य) कसिगोरक्ख [ कृषि और गोरक्षा ] कासकम्म [ अपने हाथ से उद्योग-धन्धे करने वाले शिल्पी और पेशेवर लोग ], भतिकम्म ( मजदूरी पेशा । राजपुरुषों के ये नाम हैं - रायामच्च ( राजामात्य), अस्सवारिक ( अश्वाध्यक्ष जैसा उच्च
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