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विषय खंड
अंग विज्जा
इसके अनन्तर राजपुरुष और पेशेवर लोगों की मिली जुली सूची दी गई है । जिनमें से नये नाम ये हैं - छत्तधारक, पसाधक ( प्रसाधक, प्रसाधन कार्य करनेवाला ). थिस ( एक प्रति के अनुसार हत्थिसंख), अस्सखंस [ एक प्रति के अनुसार अस्ससंख ] संभवतः यही मूलरूप था जो उच्चारण में वर्णविपर्यय से खंस बन गया), अग्गि उपजीवी ( आहिताग्नि ) कुसीलक, रंगावचर ( रंगमंच पर अभिनय करनेवाला ), गंधक, मालाकार, चुण्णिकार, ( स्नान चूर्ण बनाने वाला जिसे चुण्णवाणिय भी कहते थे ) सूत मागद्य, पुस्समाणव, पुरोहित, धम्मट्ठ ( धर्मस्थ), महामंत (महामात्र) गणक, गंधिक - गायक, दपकार, बहुस्सुय (बहुश्रुत) । इस सूची के पुस्समाणव का उल्लेख पृ० १४६ पर भी आचुका है। और यह वही है जिसका पतंजलि ने " महीपालवचः श्रुत्वा जुघुषुः पुष्यमाणवा:' इस श्लोकार्ध में उल्लेख किया है । ये पुष्यमाणव एक प्रकार के बन्दी जन या भाट ज्ञात होते हैं जो राजा की प्रशंसा में कुछ श्लोक पाठ करते या सार्वजनिक रूप से कुछ घोषणा करते थे । यहां 'महीपालवचः श्रुत्वा ' यह उक्ति संभवतः पुष्यमित्र शुंग के लिए है । जब उसने सेना-प्रदर्शन के व्याज से उपस्थित अपने स्वामी अंतिम मौर्यराजा बृहद्रथ को मार डाला, तब उसके पक्षपाती पुष्यमाणवों ने सार्वजनिक रूप से उसके राजा बन जाने की घोषणा की । पतंजलिने यह वाक्य किसी काव्य से उद्धृत किया जान पड़ता है । अथवा यह उसके समय में स्फुट उक्ति ही बन गई हो। पुष्यमाणव शब्द द्वयर्थक जान पडता है । उसका दूसरा अर्थ पुण्य अर्थात् पुष्यमित्र के माणव या ब्राह्मण सैनिकों से था । ( पृ० १६० )
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दपकार का अर्थ स्पष्ट नहीं है । संभवतः दर्पकार का आशय अपने बल का ais करने वाले विशेष बलशाली व्यक्तियों से था । जिन्हें वंठ कहते थे और जो अपने भारी शरीर बल से शेर - हाथियों से लड़ाए जाते थे । गन्धिक-गायक भी नया शब्द है । उसका आशय संभवतः उस तरह गवैयों से था जिनमें गानविद्या के ज्ञान की सगन्धता या कौशल अभिमान रहता था ।
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सूची को आगे बढ़ाते हुए मणिकार, स्वर्णकार, कोट्टाक (बढई, यह शब्द आचारांग २२१२ में भी आया है, तुलना - संस्कृत कोटक, मानियर विलियम्स ), वट्टकी ( संभवतः कटोरे बनाने वाला) वत्थु पाढ़क [ वास्तुपाठक, वास्तुशास्त्र का अभ्यासी ], बत्थुवापतिक (वास्तुव्यापृतक - वास्तुकर्म करनेवाला), मंत्रिक [ मान्त्रिक ], भंडवापत ( भाण्डव्यात, पण्य या क्रय-विक्रय में लगा हुआ ), तित्थवापत [घाट वगैरेह बनानेवाला ], आरामवादट ( बाग, बगीचे का काम करनेवाला), रथकार, दारुक, महाणसिक, सूत, ओदनिक, सामेलक्ख [ संभवतः संमली या कुट्टनिओं की देखरेख करने वाला विट् ], गणिकाखंस, हत्थारोह, अस्सारोह, दूत, प्रेष्य, बंदनागरिक, चोरलोपदार [ चोर एवं चोरी का माल पकडनेवाला ], मूलक, खाणक, मूलिक, मूलकम्म, सव्व,सत्थक [सब शस्त्रों का व्यवहार करनेवाला, संभवतः अयः शूल उपायों से वर्तन वाले जिन्हें आयःशूलिक कहा जाता था ] ।
सारवान व्यक्तियो में हरणिक, सुवणिक, चन्दन के व्यापारी, दुस्सिक,
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