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________________ विषयखंड अंग विज्जा जामिलिक (बौद्ध संस्कृत में इसे ही यमली कहा गया है), दिव्यावदान २७६।११, पादताडितक नामक भाण में श्लोक ५३ में भी इसका उल्लेख हुआ है जिससे ज्ञात होता है कि यह एक प्रकार का कायबंधन या पटका था जिसमें दो संभवतः भिन्न रंग के वस्त्रों को एक साथ बटकर कटि में बांधा जाता था। (समयुगल निबद्धमध्यदेशः)। विशेषतः ये वस्त्र चिकने मोटे अच्छे बुने हुए सस्ते या महँगे होते थे । पृ. ७१। स्त्री जातीय आभूषणों में ये नाम हैं-शिरीषमालिका, नलीयमालिका (नलकी के आकार के मन कों की माला), मकरिका (दो मगरमुखों को मिलाकर बनाया हुआ मस्तक का आभूषण), अवारिका या धनिस के आकार के दानों की माला, पुप्फितिका (पुष्पाकृतिका) गहना, मकण्णी (संभवतः लिपटकर बैठे हुए दो बंदरों के अलंकरण वाला आभूषण ) लकड [ कान में पहनने के चन्दन आदि काष्ठ के बुन्दे) बाली (कर्णवल्लिका), कर्णिका, कुण्डमालिका (कुंडल), सिद्धार्थका (वह आभूषण जिस पर सरसों के दाने जैसे रवे उठाये गये हो), अंगुलिमुद्रिका, अक्षमालिका (रुद्राक्ष की आकृति के दानों की माला), पयुका (पदिक की आकृति से युक्तमाला), णितरिंगी (संभवतः लहरियेदार माला), कंटकमाला (नुकीले दानों की माला), घनपिच्छलिका (मोरपिच्छी की आकृति के दानों से घनी गूथी हुई माला), विकालिका (विकालिका या घटिका जैसे दानों की माला), एकावलिका (मोतियों की इकलड़ी माला जिसका कालिदास और बाण में उल्लेख आया है), पिप्पलमालिका (पीपली के आकार के दानों की माला जिसे मटरमाला भी कहते हैं), हारावली (एक में गूथे हुए कई हार), मुक्तावली (मोतियों की विशेष माला जिसके बीच में नीलम की गुरिया पड़ी रहती थी)। कमर के आभूषणों में कांची, रशना, मेखला, जंबुका (जामुन की आकृति के बड़े दानों की करधनी, जैसी मथुरा कला में मिलती हैं), कंटिका (कंटीली जैसे दानों पाली) संपडिका (कमर में कसी या मिली हुई करधनी) के नाम हैं। पैर के गहनों में पादमुद्रिका (पामुद्दिका ), पादसूचिका, पादघट्टिका, किंकिणिका (छोटे बूंघरू वाला आभूषण ) और वम्मिका (पैरों का ऐसा आभूषण जिसमें दीमक की आकृति के बिना बजने वाले धुंघरू के गुच्छे लगे रहते हैं, जिन्हें बाजरे के धुंघरू भी कहते हैं।) (पृ० ७१), शयनासन और यानों में प्रायः पहले के ही नाम आये हैं । बर्तनों के नामों में ये विशेष हैं-करोडी (करोटिका-कटोरी), कांस्यपात्री, पालिका (पाली), सरिका, भंगारिका, कंचणिका, कवचिका । बड़े बर्तनों (भांडोपकरण ) के ये नाम उल्लेखनीय हैं - अलिन्दक (बड़ा पात्र), पात्री (तश्तरी), ओखली (थाली), कालंची, करकी (टोटीदार करवा ), कुठारिका (कोष्ठागार का कोई पात्र ), थाली, मंडी (मांड पसाने का बर्तन), घड़िया, दवी (डोई ), केला (छोटा घड़ा), ऊष्ट्रिका (गगरी), माणिका (माणक नामक घडे का छोटा रूप), अणिसका (मिट्टी का सिलौटा), आयमणी (आचमणी या चमची ) चुल्ली, फुमणाली (फुकनी), समंदणी (पकडने का संडसी), मंजूषिका (छोटी Jain Educationa international For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012074
Book TitleYatindrasuri Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size14 MB
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