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________________ १७२ श्री यतीन्द्रसूरि अभिनंदन ग्रंथ बिविध कार्षापण और णाणक, मासक, अद्धमासक, काकणी और अट्ठभाग का उल्लेख है। सुवर्ण के साथ सुवर्णमासक और सुवर्ण-काकणी का नाम विशेष रूप से लिया गया है (पृ. २१६)। _दूसरे द्वार में (पृ० ६६-७२) पिचहत्तर स्त्री नामों की सूचियाँ हैं जिनमें मनुष्य, देवयोनि, चतुष्पद, पक्षी, जलचर, थलचर, वृक्ष, पुष्प, फल, भोजन, वस्त्र, आभूषण, शयनासन, यान, भाजन, भाण्डोपकरण, और आयुधों के नाम है। स्त्रीजातीय मनुष्य नामों में निम्नलिखित उल्लेखनीय हैं - अमची, वल्लभी, प्रतिहारी, भोगिनी, तलवरी, रटिनी (राष्ट्रिक नामक उच्च अधिकारी की पत्नी), सार्यवाही [सार्थवाह नामक व्यापारी की पत्नी], इब्भी [इभ्य नामक श्रेष्ठी की पत्नी।, देश के अनुसार लाटी, किराती, बब्बरी ( बर्बर देश की), जोणिका (यवन देश की), शबरी, पुलिन्दी, आन्ध्री, दिमिलि (मिल या द्राविड़ देश की स्त्री) पृ० ६८ । देवयोनि (पृ० ६९) के अन्तर्गत कुछ देवियों के नाम महत्वपूर्ण हैं, जैसे इन्द्रमहिषी, असुरमहिषी, अइरिका, भगवती । किन्तु इस सूची में कुछ विदेश की देवियों के नाम भी आगये हैं, उनमें अपला, अणादित्ता, अइराणि, सालि-मालिनी उल्लेखनीय है । अपला यूनानीदेवी पेलस-अथीनी और अणादित्ता ईरान की अनाहिता ज्ञात होती हैं । सालिमालिनी की पहचान चन्द्रमा की यूनानीदेवी सेलिनी से संभवतः की जा सकती है । तिधिणी या तिधणी संज्ञा स्पष्ट नहीं है । हो सकता है यह रोम की देवी डायना का भारतीय रूप हो । अइराणि माम पृ० २०५ और २२३ पर भी आया है । इसकी पहचान निश्चित नहीं । किन्तु प्राचीन देवियों की सूची में अफ्रोदिति का नाम इसके निकटतम है । यदि अइराणित्ति का पाठ अइरादित्ती रहा हो तो यह पहचान ठीक हो सकती है। रंभत्ति मिस्सकेसित्ति का पाठ भी कुछ बदला हुआ जान पड़ता है; क्योंकि मिश्रकेशी का नाम पहले आचका है। मोतीचन्द्र जी को प्राप्त एक प्रति में रज्म तिमिस्सकेसित्ति पाठ मिला था। इनमें तिमिस्सकेसी अरतिमिस नामक यूनानी देवी जान पड़ती है और रब्भ की पहचान इस्तर से संभव है । जो प्राचीन जगत् में अत्यन्त विख्यात थी और जिसे रायी, रीया भी कहा जाता था। ___ स्त्री जातीय वस्त्रों के नामों में ये शब्द उल्लेखनीय हैं । पत्रोर्ण, प्रवेणी, सोमित्तिक (अर्थ शास्त्र की सौमित्रिका जिसकी पहचान श्री मोतीचन्द जी ने पेरिप्लस के सगमोतोजिन से की है), अर्धकौशेयिका (जिसमें आधा सूत और आधा रेशम हो. कौशेयिका (पूरे रेशमी धागेवाला), पिकानादित (यह संभवतः वहुत महीन अंशुक था जिसे स्त्रियां पिक नामक केशपाश सिर पर बनाते समय बालों के साथ गूंथती थीं। पिक नामक केशपाश का उल्लेख अश्व घोष के सौन्दरनंद ७७ में शुक्तांशुकाट्टाल नाम से एवं पद्मप्राभृतक नामक भाण में कोकिल केशपाश नाम से आया है और उसका रूप मथुरा वेदिकास्तंभ संख्या जे० ५५ के अशोक दोहद दृश्य में अंकित हुआ है), वाउक या वायुक (बाफ्त हवा), वेलविका (बेलदार या बेलभांत से युक्त वस्त्र), माहिसिक (महिष जनपद या हैदराबाद के बुने हुए वस्त्र), इल्लि (कोमल या कृष्ण वर्ण के वस्त्र), Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012074
Book TitleYatindrasuri Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size14 MB
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