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श्री यतीन्द्रसूरि अभिनंदन ग्रंथ
विविध नाम से दिया गया है, पर वह प्रसिद्ध संडेरक गच्छ ही है । c) गच्छ नाम सूची में जामाणकीय का नाम है, पर लेख में वहां गच्छ
शब्द नहीं होनेसे ग्राम का नाम ही समझना चाहिये । d) सिडानी को सिध्दान्ती होने का उल्लेख नोटो के पृ. ३४ में कर ही
दिया है। e) लेखांक १२३ में “सेखुरगच्छ” का नाम है वह विचारणीय है। f) लेखांक १२७ में व्र. स्याणी गच्छ नाम आता है, पर अशुध्द खुदा या
पढा गया प्रतीत होता है। (२) अर्बुदगिरि लेख संदोह में
१. चतरूप्रगच्छ का नाम लेखांक १५२ में मिलता है वह संभवतः
अशुद्ध है। (३) नाहरजी के जैन लेख संग्रह में
१. वाहड (ले. २२६९ में D छपा है वह संडेर संभव है । २. ता (शा!) वकीय (ले. ८६७) छपा है, वह ज्ञानकीय संभव है । ३. व्यवसीह (ले. १७०६) छपा है । वह वास्तव में अशुद्ध छपा है व
गच्छ का नाम नहीं है। ४. पर्वीय-(ले. ४१२) में छपा है वह पल्लीय संभव है । ५. गच्छ नाम सूची में पार्श्वनाथगच्छ छपा है, पर लेखों में पार्श्वचंद्रसूरि __ गच्छ नाम मिलता है; अतः भ्रमवश भूल हुई है। ६. ले. ११५९ में चाणा चालगच्छ छपा है । वहाँ नाणावाल होना संभव है।
लेख अशुद्ध पढ़ा गया प्रतीत होता है। ७. ले. १२८८ में जापडाणगच्छ नाम आता है । वह भी प्रायः अशुद्ध पढ़ा
गया प्रतीत होता है। ८. ले. नं. १३४० में “नमदालगच्छ” छपा है । वहाँ ओसवाल गच्छ नाम ___ संभव है । खुदने व पढ़ने में अशुद्धि रह गयी है ।
९. ले. १०७९ में निद्वति नाम अशुद्ध छपा है। शुद्धनाम निवृत्ति है । १०. ले. १०४२ में "राम (!) प्रम्पागच्छ” अशुद्ध छपा है। ११. ले. १६८९ में वापदीय गच्छ छपा है, वायडीय चाहिये । १२. ले. १६२५ में रदुल गच्छ भी अशुद्ध छपा है । १४. ले. २४६४ में थिरादा छपा है। वहाँ थिरापद्र पाठ होना संभव है।
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