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विषयखंड
जैन श्रमणों के गच्छों पर संक्षिप्त प्रकाश
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काठियावाड ) ही इसका सम्बन्ध होने से यह नाम पड़ा है । शालीने ग्रन्थ मांगरोल में बनाये हैं । अतः वहां इस की गद्दी व प्रभुत्व होगया ।
हर्षपुरीय गच्छ - हर्षपुर से इस गच्छ का नाम पड़ा है जो कि संभवतः हरसोर नामक स्थान है । दर्शन दिक्ताजी आदि कई विद्वानों ने इसे अजमेर के निकटवर्त्ती हांसोट लिखा है पर मेरी राय में मकराने के पास का हरसोर है ।
कल्पसूत्र स्थविरा में कोटिक गण के प्रश्नवाहण कुल का उल्लेख मिलता है । यह गच्छ उसी कुल में से निकला है । इसी गच्छ अभयदेवसूरि को जयसिंह या कर्ण राजा के मलधारी कहने से मलधारी गच्छ नाम पड़ा। इस गच्छ में अनेक विद्वान हुए जिनके सम्बन्ध में पाटण भंडार सूची व अलंकार महोदधिकी प्रस्तवना देखना चाहिये ।
हयकपुरीयगच्छ – चिन्तामणि भंडारस्थ धातु प्रतिमा लेख (सं. १२३७ का ) इस गच्छ के नामोल्लेख वाला पाया जाता है ।
हस्तिकुंडी - हथंडीगच्छ - जोधपुर राज्य के हथंडी नामक ग्राम से स. ९९६ व १०५३ के इस के शिलालेख प्राप्त हुए हैं। उसी स्थान के नाम से यह संडेरगच्छ में से बलभद्र ( वासुदेवसूरि ) से शाखा निकली । ये बलभद्राचार्य बड़े प्रभावक हुए । इनके उपदेश से विदग्धराज ने हस्तिकुंडी में सं. ९७३ में जैन मंदिर बनवाया । इनके सम्बन्ध में विशेष जानने के लिये देखें - संडेरगच्छ प्रबन्ध संग्रह व ऐ. रा. सं. भा. २ ।
हारीजगच्छ - पाटण और संखेश्वर के मध्यवर्त्ती हारीज नामक स्थान से यह गच्छ प्रसिद्ध में आया । इसके १४ वीं से १६ वीं शती तक के लेख प्रकाशित हैं । इस गच्छ के नेमिचंद्रसूरि ने तरंगवती कथा संक्षेप व ऋषभ पंचाशिका वृत्ति बनाई ।
हुंबडगच्छ - हुंबड स्थान से ही इसका सम्बन्ध प्रतीत होता है जहाँ से हुंबड नामक जाति प्रसिद्धि में आई । इस गच्छ के १५ वीं शती के लेख प्रकाशित हैं ।
हीरापल्ली -- इस गच्छ का एक लेख सं. १४२९ वीरचंदसूरिप्रतिष्ठित प्राचीन लेख संग्रह में प्रकाशित है । संभवतः जीरापल्ली को अशुद्ध पढ़े जाने के कारण ही यह नाम छपा है । यदि पाठ शुद्ध है तो हीरापल्ली नामक किसी स्थान से उत्पत्ति हुई है । बुद्धिसागरसूरिजी ने इसे वीजापुर के निकटवर्ती हीरपुर होने का अनुमान किया I प्राचीन लेख संग्रह लेखांक ८० में हीरापल्ली नाम आया है ।
अब कतिपय शंकाशील गच्छ नामों का निर्देश भी यहां कर दिया जाता है१. विजयधर्मसूरि संग्रहित प्राचीन लेख संग्रह भा. १ में से
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a) उढव एवं कूवड गच्छों के नाम विचारणीय हैं । वे अशुद्ध नहीं पढ़े गये हो । b) ले. ४०० में खंडेरवाल नाम आता है । उसे गच्छ सूची में खंडेरवाल के
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