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१५८ श्री यतीन्द्रसूरि अभिनंदन ग्रंथ
विविध देखना चाहिये । सांडेरवगच्छ की आचार्य-परम्परादिका परिचय पट्टावली समुच्चय भा. २ के पृ. २१३ में दिया है।
आगे आनेवाला हस्तिकुंडी-हथुडी गच्छ भी इसी गच्छ की शाखा है।
सत्यपुरीय-बृहद्गच्छ की शाखा है । १४ वी १५ वींशतीके लेख प्राप्त हैं । मारवाड़राज्य के साचौर (सत्यपुर) से इसकी प्रसिद्ध हुई ।
सुराणगच्छ-संभवतः धर्मघोषसूरिजी ने सुराणों को प्रतिबोध दिया जिनके वंशज आज भी सुराणा कहलाते हैं । उसी गोत्र से इसका सम्बन्ध है।
सरवालगच्छ -नाहरजी के जैन लेख संग्रह का प्रथम लेख सं. १११० का इसी गच्छ का है। सं. ११७४ से १२१२ के ४ लेख जिनेश्वरसूरि संतान के प्राचीन लेख संग्रह में प्रकाशित है। पिंड नियुक्ति वृत्ति (सं. १९६९) के रचयिता वीरगणि ने भी अपना चन्द्रगच्छ - सरवाल गच्छ बतलाया है।
सागरगच्छ -तपा गच्छ की शाखा है। देखें - तपागच्छ ।
साघुपूर्णिमा - पूर्णिमा गच्छ की यह शाखा सं. १२३६ में पृथक हुई । इसके बहुत से अभिलेख प्रकाशित हैं।
___ सावदेवाचार्यगच्छ - सावदेव नामक आचार्य के नाम से निकला । धातु प्रतिमा लेख संग्रह भा. २ ले. १०८३ में सं. ११६८ के लेख में यह नाम आता है।
सुधर्मगच्छ - पार्श्वचन्द्रसूरि के प्रशिष्य बह्मर्षिविनयदेवसूरि ने अपना मत इस नाम से सं. १६०२ में चलाया। इस गच्छ के आचरणादि के लिए दे. सुधर्मगच्छ परीक्षा ऐ. रास संग्रह भा. ३.
सुधर्मबृहत्तपागच्छ - २० वीं शताब्दी में श्रीमद्राजेन्द्रसूरिजी म. ने इसे स्थापित किया है। इसको त्रिस्तुतिक (तीन थुई ) गच्छ भी कहते हैं। इन्होंने श्री अभिधान राजेन्द्र कोषादि ६४ ग्रन्थों की रचना की है। वर्तमान में श्री यतीन्द्रसुरिजी इस गच्छ के आचार्य हैं । मारवाड, मालवा - नेमाड़ और गुजरात में उनके अनेक श्रावक अनु
यायी हैं
सुविहितगच्छ -धातु प्रतिमा लेख संग्रह में नाम है, पर लेख में गच्छ अक्षुण्ण होनेसे यह विशेषण ही लगता है ।
सैद्धान्तिक गच्छ (सैद्धान्तीय)- सैद्धान्तिक विषयों की प्रधानता से यह नाम पड़ा । वड़गच्छ पट्टावलि के अनुसार यह उसीकी शाखा है। १४ वीं शती के लेख प्राप्त है।
सोरठगच्छ - इस गच्छ के ज्ञानचंद्रसूरि के रचित कई रास, चौपई (सं. १५६८ से ११९९ में) का उल्लेख जै. गु. भा. ३ पृ. ५४३ में मिलता है । सोरठ देश (सौराष्ट्र
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