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जैन श्रमणों के गच्छों पर संक्षिप्त प्रकाश
१६. ले. २२३२ में वापटीय अशुद्ध छपा है, वायडीय होना चाहिये ।
(४) धातुप्रतिमा लेख संग्रह से
विषय खंड
भा. १ के गच्छ व आचार्य नामसूची में,
पृ. ३८ में शशरे गच्छ छपा है, संडेर चाहिये ।
पृ. ३९ में किन्नरस गच्छ छपा है । वह कृष्णर्षिगच्छ न हो ! पृ. ३९ में जेरंडगच्छ छपा है । वह अशुद्ध प्रतीत होता है ।
पृ. ४० में नाणेद्र गच्छ छपा है । वहां नागेन्द्र चाहिये । पू. ४० में तिहुणा गच्छ छपा है । वह भी अशुद्ध है ।
भा. २ ले. १३ में नागर ( नागेन्द्र ) छपा है । वह नागेन्द्र ही संभव है ।
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(५) अहमदाबाद से प्रकाशित प्रशस्ति संग्रह में
प्र. २४६ में गच्छ नाम सूची में सुविहित गच्छ छपा है, पर लेख में गच्छ शब्द नहीं है ।
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पृ. ६४ में भाकर गच्छ छपा है । वह अशुध्द है ।
पृ. १०२ में भाव गच्छ ६] जैन गच्छ मत प्रबन्ध में
१. निवजिय गच्छ - ८४ गच्छ नाम सूची से लिया है, पर उसका हाल कोई उल्लेख नहीं मिलता ।
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२. स्तनपक्ष गच्छ-किसी पट्टावलि के अनुसार १३ वीं में विद्यमान होना लिखा है, पर अन्य उल्लेख प्राप्त नहीं है ।
३. वीशावल गच्छ - पृ. ६७ में जिनवल्लभसूरि के सार्ध शतक पर टीका के रचयिता धनेश्वरसूरि को वीशावल गच्छ का लिखा है; पर प्रशस्ति में केवल चन्द्रकांत का उल्लेख है । अतः यह नाम सही नहीं ।
४. पुरंदर गच्छ (पृ. ६८ ) सं. १४९६ के राणपुर के लेख में इस गच्छ का नाम आता है लिखा है । पर वह लेख तपागच्छीय सोमसुंदरसूरि का ही है । ५. पृ. १०३ में वागड गच्छ के लेख का अंश दिया है । वह वायड संभव है । ६. पृ. १०७ सीदाघटीय गच्छ के प्रतिमा लेख का उल्लेख है, पर वह अशुद्ध है। ७. १. ४० जांगेड का नाम आता है । पर वह अशुद्ध ही प्रतीत होता है । (७) चित्तामणि भूमिगृहस्थ धातु प्रतिमा लेखों में
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१. सं. १०२० के लेख में सनपुरीय धर्मघोषसूरि है । रत्नपुरीय पाठ संभव है ।
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