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विषय खंड
जैन श्रमणों के गच्छों पर संक्षिप्त प्रकाश .
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भीमपल्लीय गच्छ - डीसा से पश्चिम दिशा में ८ कोस पर भीलड़ी भीमपल्ली नामक स्थान से इस गच्छ का नाम पड़ा है । इस गच्छ के कतिपय प्रतिमा लेख प्रकाशित है । १६ वीं सदी के लेखों से यह पूर्णिमा गच्छ की शाखा ज्ञात होती है ।
मल्लधारी इसका मूलनाम हर्षपुरीय गच्छ है जिसका सम्बन्ध हर्षपुर स्थान से है । इस गच्छ के अभयदेवसूरि को कर्ण राजा ने मलमलीन गात्र देख मलधारी कहां । ईसीले यह गच्छ नाम पड़ा । विशेष जानने के लिये देखें-हर्षपुर गन्छ । इस गच्छ के लेख १३ वीं से १६ वीं तक के मिलते हैं । अभयदेवसूरि आदि कई बड़े बड़े विद्वान भी इस गच्छ में हुए । दे. अलंकार महोदधि की लालचंद गांधी लिखित प्रस्तावना ।
मोढ़गच्छी (मोढेरक)--नाहर लेखांक १६९४ के सं. १२२७ के लेख में मोढगच्छे बाय मट्टि संताने जिनभद्राचार्य का प्रतिष्ठायक के रूप में उल्लेख है । गुजरातवर्ती मोढेरा नामक स्थान से इसकी प्रसिद्धि हुई है। वहीं से मोढनामक जाति भी प्रसिद्ध हुई ।
भावसूरिगन्छ --भावसूरि आचार्य के नाम से प्रसिद्ध हुआ । आबू लेख सन्दोह में एक लेख प्रकाशित है।
यशसूरिगच्छ-ना. ले.. ५३० में सं. १२४२ के पंचतीर्थी के लेख में यशसूरिंगच्छ का नाम आता है । नाम से यह यशसूरि के नाम से प्रसिद्ध हुआ स्पष्ट है ।
रदुलगच्छ-ना. ले. १६२५ में पंचतीर्थी के सं १५७६ के लेख में यह नाम आता है । पर नाम अशुद्ध पढ़ा गया प्रतीत होता है ।
रांकागच्छ - ना. ले. १७८० में सं. १३२० में महीचंद्रसूरि प्रतिष्ठित प्रतिमा के लेख में यह नाम मिलता है । ओसवालों में रांका गोत्र भी है ।
राजगच्छ - मुनि विनयसागर से प्राप्त राजगच्छ पट्टावलि के अनुसार नन्नसूरि से राजगञ्छ नाम प्रसिद्ध हुआ । पर प्रभावक चरित्र के अनुसार धनेश्वरसूरि के, त्रिभुवुनगिरि के राजा कर्दम भूपति के पुत्र होने व राजमान्य होने से उनसे राजगच्छ नाम पड़ा लिखा है । वही ज्यादा ठीक प्रतीत होता है । इसी गच्छ के धर्मघोषसूरि से धर्मघोय गच्छ निकला । राजगच्छ की पट्टावली का सार जैन सत्य प्रकाश व. ११ अं. ८.९ में प्रकाशित है । पट्टावली के अनुसार चैत्र गच्छ से इसका सम्बन्ध था । इस गच्छ के प्रतिमा लेख भी प्राप्त हैं ।
रामसेनीय गच्छ-डीसा स वायव्य कोण में १० मील पर रामसेन नामक स्थान से यह गच्छ निकला है । इस गच्छ के कई प्रतिमा लेख प्रकाशित हैं। बडगच्छ पट्टावली के अनुसार यह उस गच्छ की एक शाखा है । सं. १४५४ के लेख से भी यही सिद्ध है। ___रुद्रपल्लीय -- सं. १२०४ में जिनशेखरसूरि से रुद्रपल्लीय स्थान के नाम से यह प्रसिद्ध हुआ है। इस गच्छ में कई विद्वान ग्रन्थकार हो गये । १७ वीं शताब्दी तक
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