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श्री यतीन्द्रसूरि अभिनंदन ग्रंथ
विविध
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मन के एकाग्र हुए बिना कोई भी धर्म - क्रिया फलप्रद नहीं होती। वह तो एक ढोंग होगा, दिखावा होगा, निरर्थक होगा और फिजूल होगा । माला हाथ में लेकर नाम स्मरण, पूजा , पाठ या और धर्म - कृत्य करिये आप का मन तुरंग बाजारों की सैर करता किसी प्रकार का सौदा खरीदता मिलेगा। इसलिए मन को वश में करने के लिये याद रखिये संगीत ही एक ऐसा साधन है कि उस पर विजय पा सकता है। बिना चित्त स्थिर हुए संगीतज्ञ अपने गले से आ55555 ऐसा शब्द भी उच्चारण नहीं कर सकता । अतः हमें मानना पड़ेगा कि चित्त स्थिरता के लिये संगीत ही सब से सरल मार्ग है ।।
संगीत विश्वात्मा की परम सात्विक तथा नित्तान्त आकर्षक चुम्बक शक्ति है । भूमंडल में ऐसा कोई स्थल नहीं जहाँ इसका अस्तित्व न हो। संगीत विद्या का कोई अन्त नहीं संगीत वह ललित व दिव्य कला है। जिसके पास जाने वाला परम आनन्द . शाश्वत सुख की प्राप्ती सुगमता से कर लेता है । संगीत वह जादू है जिसको सुन कर मनुष्य ही नहीं वरन् पशु-पक्षी भी अपनी सुध बुध खो देते हैं। संगीत वह साधक है. जिन के जरिये मनुष्य सहज मोक्ष प्राप्त कर लेता है। प्रति वासुदेव राजा रावण ने अष्टापद पर्वत पर प्रभुआदिनाथ भगवान की स्तुति गायन - वादन द्वारा ही करके तीर्थकर गौत्र का उपार्जन कर लिया था। आज भी इस युग में सिद्ध -संगीतज्ञ अपने संगीत के प्रभाव से कई असाध्य रोगों को दूर कर देते तथा कई हिंसक पशुओं को अपने वश में कर लेते देखे गये हैं। पागल आदमी संगीत की स्वरलहरी सुनाकर अच्छे किये जा रहे हैं। चाहिये एक निष्ट सच्चा साधक। जिन्दा जादू जिसे हम कहते है वह संगीत ही तो है। जिस प्रकार
नुष्य की आत्मा परमात्मा की अनुभूति में एक आध्यात्मिक विश्राम की प्राप्ति के लिये व्याकुल रहती है उसी प्रकार चित्त और मस्तिष्क एक भौतिक सुख और सन्तोष पाने के लिये मानसिक विश्राम के विविध केन्द्रों की खोज में भटकता रहता है। वह अपनी आध्यात्मिक और मानसिक दोनों प्रकार की भूख मिटाना चाहता है। और इन दोनों प्रकार की भूख के लिए ललित कलाओं का आश्रय आवश्यक है। भूखे को यदि पुष्टि दायक और शुद्ध भोजन न मिले तो वह हानिकारक और अशुद्ध भोजन से ही अपना पेट भर लेता है। ठीक इसी प्रकार आज का मानव सिनेमा संगीत के अश्लील और भद्दे गाने गुनगुना कर ही अपनी भूख इस प्रकार के अशुद्ध भोजन द्वारा मिटा रहा है । सच मानीये जिस तरह के आदि व्यंजनों के साथ अ आदि स्वरों का जो सम्बन्ध है ठीक इसी तरह साहित्य और संगीत का संबंध है। इन दोनों का चोली-दामन का सा साथ है यदि यह एक दूसरे से अलग हो तो इनका कोई अस्तित्व नहीं। यदि संगीत के साथ गन्दे साहित्य का मेल हो जाय तो समझ लीजिये फिर पतन का गहरा गहर तैयार है। और संगीत के साथ यदि प्रभु-भक्ति -- भावों से ओत प्रीत हमारे पूर्वाचार्यो अनेक विद्वान् साहित्य कारों व कवियों द्वारा शास्त्रीय राग रागनियों में तालबद्ध अवगुंठित किये हुए
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