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८२ श्री यतीन्द्रसूरि अभिनंदन ग्रंथ
विविध हैं। सप्ताक्षरी (नमो अरिहंताणं) के लिये योगशास्त्र के आठवें प्रकाश में लिखा है कि
यदीच्छेद् भवदावाग्ने समुच्छेदम् क्षणादपि ।
स्मरेत्तदादिमन्त्रस्य वर्ण सप्तकमादिमम् ॥ यदि संसार के रूप दावानल का क्षण मात्र में उच्छेद करने की इच्छा हो तो आदि मन्त्र ( ननस्कार) के आदे के सात अक्षर । नमो अरिहंताणं ) का स्मरण करना चाहिये। षोडशाक्षरी मन्त्र की महत्ता के विषय में कहा गया है कि
यदुच्चारण मात्रेण, पाप संघः प्रलीयते ।
आत्मादेयः शिरोदेय न देयः पोडषाक्षरी ।। शरीर का नाश कर देना, मस्तक दे देना परन्तु जिसके उच्चारण मात्र से ही पापा संघ (समूह) नष्ट हो जाता है, ऐसा शोडषाक्षरी मंत्र किस भी नहीं देना चाहिये।
. इस प्रकार के महामहिमाशाली सकल श्रुतागम रहस्य भूत श्री मंत्राधिराज महामन्त्र नमस्कार को प्राप्त करके भी नाम तो जैन रखते हैं और अत्यन्त लाभप्रदाता मंत्र को छोडकर अन्य मंत्रों के लिए इधर उधर भटकते देखे जाते है। मंत्रों के लोभ से लुब्ध होकर भटकने वाले इजत धन एवं धर्म तक से हाथ धोते देखे गए, हैं। सब और से लुट जाने के पश्चाद् वे मंत्रेच्छु साधुओं के पास उनसे मन्त्र प्राप्त कर बिना महनत के श्रीमन्त बनने की इच्छा से आते हैं। उनकी सेवा शुश्रूषा करते है। अकारण दयावान् चे मुनिराज उन्हें महा मंगलकारी श्री नवकार मन्त्र देते हैं। तो वे कहते हैं। महाराज? इस में क्या धरा है। यह तो हमारे नन्ने मुन्ने बच्चों को भी आता है। इसका स्मरण कर कर के कितने ही वर्ष पूरे हो गए । परन्तु कुछ भी नहीं मिला कृपा कर के अन्य देवी देवता की आराधना बतलाए । जिस के साधन स्मरण से मेरी सभी चाहनाएँ पूर्ण हो जाय। मुनिराज बहुत समझाते हैं। परन्तु वे नहीं समझते। वे मन्त्रों को लोभ से लुब्ध मुग्ध जीव यह नहीं जानते कि क्या ये देवी देवता हमारे पूर्वकृत कमों को मिटा सकने में समर्थ है ? वे भी तो कर्मपाश में बन्धे हैं। स्वयं बन्धा हुवा दूसरे को बन्धनों से कैसे छुडा सकता है ? देवी देवता हमको धन पुत्र कलत्रादि देकर सुखी कर देंगे। उनकी प्रसन्नता से हमारा सारा का सारा कार्य चुटकी बजाते ही हो जायगा। इस भ्रान्त धारणाने हमको पुरुषार्थ हीन बना दिया है। जरा सा दुःख आया अरिहंत याद नहीं आते अपितु ये सकामी देवी देवता याद आते हैं। मुझे आश्चर्य तो जब होता है ऐसे लोग चिकित्सकों के औषधोपचार से रोग मुक्त होते हैं तथा अकस्मात् कहीं या किसी ओर से कुछ लाभ होता है तो चट से ऐसा कहे जाते सुनता हूँ कि "मैंने अमुक देव की या देवी की मानता ली थी, उन्हों ने कृपा कर के मुझे रोग से मुक्त कर दिया, मेरा यह काम सफल कर दिया। यदि उन्हों की कृपा नही होती तो मैं रोग से मर
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