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________________ श्रीयतीन्द्रसरि अभिनन्दन ग्रन्थ सन्मान्य बनता है। सद्गुणी सजन-विद्वज्जनोंका सत्कार सन्मान करनेवाला खुद सत्कृत सन्मानार्ह बनता है। अभिनन्दनीय आचार्य श्रीयतीन्द्रसूरिजी उसका प्रत्यक्ष प्रमाण है। कहीं कहीं लोग विशिष्ट विद्धानोंका सत्कार, पुरस्कार, सन्मान-थेलीसे भी करते हैं। कई जगह कचरानोंने-गुणक गुणसगी सज्जन श्रीमानोंने और अधिकारीओंने भी ऐसी उचित कदर की है, और कई जगह कर रहे हैं, वे अपनी कृतज्ञता दर्शा कर विज्जनों को विद्या प्रचार द्वारा समाज-हित करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं । कर्तव्य निष्ठोंको विशेष कर्तव्य-परायण बनने के लिए प्रेरित करते हैं, एवं अपनी कृतज्ञता प्रदर्शित करते हैं । कई जगह मान्य गुरुको रूपा-सोना-हीराओंसे और महामूल्य धातुओंसे तोल कर तुला-दाम करके रजत-सुवर्ण-हीरक महोत्सव मनाते हैं । लेकिन जैनाचार्य महात्मा तो निष्परिग्रही निर्ग्रन्थ होते हैं, वे द्रव्यका परिग्रह-स्वीकार क्या, स्पर्श भी करते नहि हैं, उनके लिए ऐसे अभिनन्दनग्रन्थकी योजनासन्मान-पुरस्सर उनको समर्पण करनेका विचार विचारकोंने किया उचित प्रतीत होता है। विशेषमें, ऐसे अभिनंदन प्रन्थोंमें सन्मानार्ह व्यक्तिका सद्गुणमय सत्कर्तव्य-विशिष्ट जीवनका प्रेरक परिचय कराया जाता है। और इसके साथ धार्मिक, साहित्यिक, ऐतिहासिक, सामाजिक, राजकीय, दार्शनिक, तात्त्विक, विविध विद्या-कला-विषयक विशिष्ट विद्वानोंके लेख-निबन्धों भी रहते हैं। जो देशके अभ्यासी जिज्ञासु विद्यार्थीओंकी और विद्वानोंकी शाम-वृद्धिमें सहायक हो सकते हैं । इससे उच्च प्रकारकी शिक्षा-संस्कार-प्रेरणा भी मिल सकती है। ..... (१) जीवनखण्ड ... अभिनन्दनीय श्रीयतीन्द्र सूरिजी एक विशिष्ट व्यक्ति है, जो प्रशंसनीय जीवनके ७५ वर्ष व्यतीत कर चुके हैं, और ७६ वे वर्षमें प्रविष्ट हैं। साधु-जीवनके ६१ वर्ष पसार कर चुके हैं । और वीश वर्षों से आचार्य-पदका सुयोग्य पालन कर रहे हैं । उनके जीवनका दिग्दर्शन-परिचय करानेवाला जीवनखण्ड इस अभिनन्दननाथमें प्रथम विभाग पृ. १ से ८. तक है। इसमें संस्कृतमें, हिन्दीमें. और गूजराती भाषामें कवित्व-काव्योंमें-पद्योंमें और गद्यमें विविध दृष्टि-कोणसे सूरिजीकी सदगुणमय सत्कर्तव्य-स्तुत्य सुवास सूचित है। सिर्फ गुरु-भक्त शिष्योंने ही नहि, भिन्न भिन्न देशके विशिष्ट विद्वानोंने, कवियोंने और ख्यातनाम लेखकोंने भी अपनी कविता-विद्वत्ता-लेखनशक्तिको इसमें सफल की है। सूरिजीको गुण-गानमय श्रद्धांजलि, पुष्पांजलि-कुसुमाञ्जलि समर्पित करनेवाले मुख्य ये हैं-जुनिमण्डलम (१) स्व. उ. श्रीगुलाबविजयजी, (२) स्व. वल्लभविजयजी, (३) विद्याविजयजी, . (४) जयन्तविजयजी, (५) शान्तिविजयजी, (६) सामरानन्दविजयजी, (७) जयप्रभविजयजी, (८) सौभाग्यविजयजी, (९) साध्वीजी मुक्तिश्रीजी, और (१०) श्रमणी-संघकी गुरु-भक्ति इसमें उल्लसित हुई है। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012074
Book TitleYatindrasuri Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size14 MB
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