________________
प्रस्तावना GODBOBOS
आज मंगलमय शुम आनंद-प्रसंग उपस्थित हुआ है कि परम गुरु-भक्त सज्जनोकर चिरकाल-चिन्तित मनोरथ सफल हो रहा है। निज कृतज्ञताका प्रतीकरूप यह श्रीयतीन्द्रसूरि-अभिनन्दन ग्रंथ इस स्वरूपमें प्रकाशमें आ गया है । विविध देशोंके, विविध भाषाओंके, विविध विषयोंके विशिष्ट विज्ञ-विद्वज्जनोंके, लेखकोंके और कवियोंके परिश्रमसे संकलित यह ग्रंथ सन्मान्य सूरिजीको समर्पित करनेका धन्य अवसर प्राप्त हुआ है, जिसकी प्रतिकृति सज्जनोंके कर-कमलोंको शोभा रही है। ऐसे विशिष्ट चिरस्मरणीय ग्रन्थ के दीर्घदर्शी विश्वस्त सम्पादक-मण्डलने इसकी प्रस्तावना का भार मुझ पर छोडा है । मेरेमें इतनी योग्यता न होने पर भी मैंने यह स्वीकार लिया. है, क्योंकि उनके सदभावका अनादर करना मैंने उचित नहि समझा । जो तक मुझे दी गई है, उसमें गुरु-कृपासे मैं सफल होऊंगा-ऐसे विश्वाससे मैं यथामति पथाशक्ति प्रयत्न करता हूं। __ वर्तमान युगमें प्रशंसनीय साहित्य-सेवा, इतिहास-सेवा, धर्म-सेवा, समाज-सेवा, देश-सेवा करनेवाले विशिष्ट विभूतियोंका-सन्माननीय सज्जनोंका सन्मान सिर्फ सन्मानपत्रोंसे अथवा अभिनन्दनपत्रोंसे ही नहि किया जाता, सुयोग्य विरल व्यक्तियोंका सन्मान इस प्रकार अभिनन्दनग्रंथ द्वारा होता है। महावीरप्रसाद द्विवेदीजी, गौरीशंकर हीराचन्द ओझाजी, डॉ. सर रामकृष्ण भाण्डारकर, आनन्दशंकर बापुभाई ध्रुव और डॉ. कुन्हनराज जैसे सुप्रसिद्ध विद्वानोंका सन्मान अन्यत्र अभिनन्दनग्रन्थों द्वारा हुआ प्रतीत है।
दि० जैन-समाजमें श्रीगणेशप्रसाद वर्णीजी, और पं. नाथूराम प्रेमीजीका भी सन्मान इस तरह अभिनंदनग्रन्थ द्वारा हुआ था।
श्वे. जैन-समाजमें सद्गत जनाचार्य श्रीविजयानन्दसूरिजीका श्रीआत्मानन्द-जन्मशताब्दी स्मारक ग्रन्थ प्रकाशित हुआ है, तथा उसके रचानेवाले सद्मत आचार्य श्रीविजयवल्लभसूरिजीका भी स्मारक ग्रन्थ प्रकट हुआ है। तीनसो वर्षों पहिले के महोपाध्याय श्रीयशोविजयजीका स्मृतिग्रन्थ प्रकाशित हो चुका है, एवं सद्गत श्रीबहादुरसिंहनी सिंघीका स्मृति-प्रन्थ प्रकट हुआ है।
इसी तरह जिनोंने दो वर्ष पहिले गुरु-भक्तिसे श्रीराजेन्द्रसूरि-स्मारक प्रन्थकी विशिष्ट योजना सफल की थी, उनहीं आचार्य-श्रीयंतीन्द्रसूरिजीका सम्मान हाल में इस अभिनन्दनग्रन्थ द्वारा किया जाता है। यह कहावत यहाँ चरितार्थ होती है कि पूज्योंकी पूजा करनेवाला क्रमशः पूजनीय होता है, गुरुजनोंका गुण-गौरव करनेवाला स्वयं गौरवशाली गुण-गरिष्ठ होता है, सन्माननीयोंका · सन्मान करनेवाला स्वयं
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org