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विषय खंड अहिंसा का आदर्श
३१ चाहिये, जिससे शक्ति का सही दिशा में उपयोग हो और बुद्धिकी सही दिशा में प्रवृत्ति हो । इस में मुझे अणुभर भी सन्देह नहीं कि अगर आजके राष्ट्र अहिंसा के मूलभूत सूत्रया मन्त्रको समझ लें तो विश्व शान्ति का अपूर्ण स्वप्न पूर्ण हो और दुखी मानव सुखी हो तथा बैर-विरोध के स्थान में जीवनमें प्रेम और क्षमा हो।
दुसरे शब्दों में वर्तमान विश्व को विनाश और विषमता से बचानेका एकही उपाय है और वह अहिंसा है । इस दिशा में डाक्टर वासुदेवशरण अग्रवाल ने ठीक ही कहा है कि “जब मानवजाति हिंसा की चरम सीमापर पहुँच चुकी है, तब ऐसे गाढ़े समय में अहिंसा में ही उसका एकमात्र अवलम्बन दिपा हुआ है । यदि मानवको महाविनाश में विलीन नहीं हो जाना है तो अहिंसा की चिरन्तनवाणीका उसे पुनः आविष्कार करना होगा । जिस बुद्धिने अणुकी सूक्ष्म शक्ति का विघटन किया है, वही बुद्धि अहिंसा की जीवनी शक्तिका मार्ग समझने की शक्ति रखती है ।” अहिंसा का मार्ग सचमुच ही विजयका मार्ग है । वह शरीर के ऊपर आत्मा की विजय का मार्ग है। वह लोक से अलोक की ओर बढनेका प्रयत्न है । वह त्याग और विवेक का सुखप्रद पथ है। वह क्रोध और विरोध को मिटानेका महामन्त्र है । अहिंसा ही सभी धर्मों की कसौटी है । अहिंसाही मानव-धर्म और विश्व-संस्कृति की शिलामिन्ति है । अहिंसा के अभाव में जीवन सम्भव नहीं है, अतः अहिंसा को अलग करनेका अर्थ है मृत्युको निमन्त्रण देना ।
महात्मा गांधी के शब्दोंमें “अगर अहिंसा या प्रेम हमारा जीवन में न होता तो इस मर्त्यलोक में हमारा जीवन कठिन हो जाता। जीवन तो मृत्युपर प्रत्यक्ष और सनातन विजय है । अगर मनुष्य और पशु के बीच कोई मौलिक और सबसे महान अन्तर है तो वह यही है कि मनुष्य दिनोंदिन इस धर्म का अधिकाधिक साक्षात्कार कर सकता है।" आज के युग में अहिंसा कैसे ? यह तो प्रश्न ही निरर्थक है क्यों कि अहिंसा हमारा स्वाभाविक जन्मजात धर्म हैं, पर आज हम इसे भुल चुके हैं । इसी लिये जैसे हम स्वच्छता और सहयोग, क्रान्ति और शान्ति-दिवस तथा अनेक जयन्तियां और पुण्यतिथियां मनाते हैं वैसे ही आज अहिंसा धर्म का विश्व के विचारोंकों को प्रचार और प्रसार करना पड़ रहा है, ताकि विनाश रुके और विकाश बढ़े । सुप्रसिद्ध चिन्तक भगवानदास केलाके शब्दों में-'यदि मनुष्य जीवन चाहता है, मृत्यु नहीं; वह विकाश चाहता है अवरोध नहीं; वह संघटन चाहता है, विघटन नहीं तो अहिंसा आवश्यक ही अनिवार्य भी है। क्यों कि संसार का आधार अहिंसा है, जीवनका धम अहिंसा है, सुख-शान्तिके लिये अहिंसाकी आवश्यकता है। सचतो यह है कि हिंसा के वातावरण में अहिंसाकी ही विशेष आवश्यकता है। क्यों कि समाजसुधार, समाजसंगठन का मूलमन्त्रही अहिंसा पर आधारित है।
_अहिंसा के आदर्श की उज्जवलता पारिवारिक जीवन में जो माता पुत्रकी माता होनेके अतिरिक्त दासी, संरक्षिका, शिक्षिका भी बनी है, और पिता पुत्रीके लिये पिता होनेके अतिरिक्त दास, संरक्षक और
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