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श्री यतीन्द्रसूरि अभिनंदन ग्रंथ
विविध
शिक्षक भी जो बना है, उसकी पृष्ठभूमि में पारिवारिक साथ ही सामाजिक और धार्मिक कर्त्तव्यपालन की ओट में अहिंसा अपना अस्तित्व लिये है । यदि मैं कहूं कि भगवती अहिंसा का क्षेत्र केवल मनुष्यों में ही नहीं बल्कि कुछ पशुओं और पक्षियों में भी है तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। क्योंकि जीना सब चाहते है और मरना कोई भी नहीं । अतः बहुत से लोग मान लेते कि अपनी रक्षाके लिये दूसरों की रक्षा करना भी हमारा कर्त्तव्य है और अहिंसा का पालन करते हैं। अगर वे ऐसा न करें और स्वयं जीवन के शीशमहल में बैठ कर अन्य के जीवन रूपी शीशमहल पर पत्थर फेंके. तो यह संभव ही नहीं बल्कि सुनिश्चित भी समझें कि उनका भी जीवन रूपी शीशमहल सुरक्षित न रहेगा और कोई न कोई सबल सशक्त उसे चकनाचूर करही देगा ।
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फलतः भारतीय वाङमय में जो आत्मवत् सर्वभूतेषु (सभीको अपने जैसा समझो ) आत्मनः प्रतिकूलानि परेषां न समाचरेत् ( जो तुम्हें अप्रिय है उसका दुसरों के प्रति प्रयोग मत करो ) धर्मस्य मूलं दया ( धर्मका मूल दया है ) सत्यं वद ( सच बोलो ) धर्मचर ( धर्मका आचरण करो ) मृत्योर्मा अमृतं गमय ( मृत्युको नहीं अमृतत्व को प्राप्त करो ) सर्वेभवन्तु सुरिवनः ( सभी प्राणी सुखी हों) क्षेमं सर्वप्रजानां प्रभवतु ( सभी प्रजाओं का कल्याण हो ) अहिंसा परमो धर्मः ( अहिंसा ही परम धर्म है ) और यतो धर्मस्तततो जयः ( जहाँ धर्म है वहाँ विजय है ] जैसी अनेकों भावनायें विखरी हैं । भारतवर्षतो इतना अधिक धर्मप्राण अहिंसा-प्रिय देश है कि उसे पाश्चात्य विद्वान आज भी आदर्श समझते हैं और धार्मिक अजायब घर कहते हैं, पर यह भी सत्य है कि कुछ धर्मों में अब अहिंसा की उपेक्षा से धर्म का प्रदर्शन मात्र रह गया है, वैसे भारतीय एक से अधिक धर्मों ने अहिंसा के आदर्श को मापने जोखने का प्रयत्न किया है । जीवन-संघर्ष की जटिलता को यदि सरलता के रूप में परिणित करनेका श्रेय अगर किसी अदृश्य शक्ति को है तो वह अहिंसा को ही है ।
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महर्षि पतंजलि ने अपने योग दर्शन में अहिंसा को न केवल यमों के रूप में स्वीकार ही किया है, बल्कि उससे वैर और विरोध भी सुदूर होने की बात कही है ।' आचार्य उमास्वामी ने भी हिंसा के त्याग से व्रत पालन होने की राय देते हुये कहा ' जीवो' पर दया करने से सुख देनेवाले बेदनीय कर्म का बन्ध होता है । २ यदि एक और धर्मविद व्यास ने अहिंसा को धर्म के अचौर्य, दान, अध्ययन, तप, अहिंसा, सत्य, क्षमा और यज्ञ लक्षणों में ग्रंथित किया तो दूसरी ओर नीतिविद भर्तृहरि ने भी प्राणियों पर दया रखना सज्जन पुरुषों का कार्य बताया । यों कुल मिलाकर कहा जा सकेगा कि सुख और शान्ति, संतोष और समृद्धि के लिये अहिंसा का आदर्श अती व आवश्यक है और अगर मैं कहूं कि
१ अहिंसा सत्यास्तेय ब्रह्मचर्या परिग्रहा यमाः । अहिंसा प्रतिष्ठायां तत्सन्निधौ वैर त्यागः
२ हिंसा नृतस्तेयों परिग्रहेभ्यो विरतिर्व्रतम् । भूतत्रत्यनुकम्मादान सरागसंयमादि योग : क्षांति शौवमिति सवेद्यस्य ।
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