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श्री यतीन्द्रसूरि अभिनंदन ग्रंथ
विविध
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दूसरों को उठने दो। Live and let live, Love all and serve all मा हिंस्यात भूतानि, आत्मतः प्रतिकुलानि परेषां न समाचरेत् जैसे सुभाषित वाक्य अहिंसा के अर्थ सूचक हैं। दूसरे दृष्टिकोन से भारत के पडौसी देश चीन में अहिंसा का अर्थ विधी रुप में किया जाता है। प्रेम करो, मित्रता बढाओ, सहयोग दो, जैसी भावनाओं द्वारा अहिंसा धर्म समझा जाता है पर मुझे तो चीनी अर्थ की अपेक्षा-विधी मूलक अर्थ की अपेक्षा निषेध मूलक अर्थ अधिक रुचिकर लगता है। इस दिशा में मेरा विचार है कि बुद्धिग्राह्य ज्ञानवाले मनुष्य ने जब किसी को अज्ञान या आलस्य के वशीभूत होकर मारा होगा ओर उसे आंखो के आगे ही तड़पते देखा होगा तथा अपने अन्तरके क्रोध सदृश विकार को उसकी व्यथा ओर वेदना को हृदयंगम किया होगा तब ही उसने अहिंसा का आशय समझा होगा ओर अन्य जनोंको समझाने के लिये सूत्र लिखा होगा - 'अहिंसा परमो धर्मः'
'मोक्षशास्त्र' जैसे लोकप्रिय ग्रन्थके प्रणेता और सर्व प्रथम जैनसूत्रकार आचार्यवर उमास्वामी से हिंसा का लक्षण समझाने के लिये कहें तो वे परामर्श देंगे-'प्रमत्तयोगाप्राणव्यपरोणं हिंसा' अर्थात प्रमाद या आलस्यके वशीभूत होकर जो जीवों के प्राणोंका हरण करना है, वह हिंसा है। प्रस्तुत सूत्र में आर हिंसा के क्षेत्र में प्रमत्त या अशान शब्द जितना मननीय और चिन्तनीय है, उतना प्राण व्यपरोपण या प्राणलेना नहीं । फलतः एक डाक्टर रोगी का ऑपरेशन करता और असफल होता तथा रोगी भी मरता पर डाक्टर हिंसक नहीं, हत्यारा नहीं और दण्डका पात्र भी नहीं। क्यों कि डाक्टर रोगी को मारना नहीं बचाना चाहता था । और एक अन्य व्यक्ति दूसरे को मा चहिन या नालायक साले जैसी सामान्य गाली भी दूसरे के हृदय को दुखाने की नियत से देता है, तो वह हिंसक है, झगड़ालू है और फूहड़ है, ऐसा भला कोन नहीं कहेगा ? हां तो जीवात्मा मरे या न भी मरे परन्तु यदि प्रमाद है तो हिंसा है और यदि प्रमाद नहीं तो जीव मर भी जावे पर हिंसा नहीं। यह एक अनोखा सा मौलिक रहस्य जैनाचार्यकी अहिंसा द्वारा विदित हुआ । दूसरे शब्दों में यही बात आचार्य कुन्दकुन्द ने भी अपने 'प्रवचनसार' की पंक्तियों में यों कहा है
मरदु व जियदु अयदाचारस्स णिच्छिदा हिंसा ।
पयदस्स णत्थि बंधो हिंसा मत्तेण समि दस्स ॥ यों तो प्रायः सभी ही धर्मों ने और विश्वके विख्यात विचारकों ने अहिंसा को सर्वोपरि और सर्वमान्य सिद्धान्त कहा पर उनमें जैन धर्म और महावीर का स्थान प्रमुख है । प्रमाम के लिये आज भी जैन ग्रन्थ पढ़े जा सकते और जैन जनों की प्रवृत्तियां परखी जा सकती हैं।
ईसाई मत के प्रवर्तक ईसामसीहने बाइबिल में एक जगह कहा-Thou shell not kill अर्थात 'दूसरोंको मत मारों' पर अन्यत्र वे खुद ही सारे गांव को मछलियां मारकर खिलाते हैं । ऐसा लगता जैसे व ऊंची बात सोचतो सके पर उसका निर्वाह नहीं कर सके। चीनके सुप्रसिद्ध दार्शनिक विद्वान खुड.चाड यानी कनफ्यूशियस ने भी कहा
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