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________________ विषय खंड अहिंसा का आदर्श ऋषियों ने हिंसा से अहिंसा का नियम निकाला, वे न्यूटन से ज्यादा प्रतिभाशाली थे और वेलिंगटन से बड़े योद्धा ।" प्रस्तुत किये अनेकानेक विश्वविख्यात विचारकों के उद्धरणों से विदित होता है कि अहिंसा मनुष्यों का धर्म है और हिंसा पशुओंका धर्म है। यदि कोई पशु होकर भी अहिंसा का पालन करता - जसे भगवान महावीर ने अपनी पूर्व पर्याय सिंह योनिमें किया तो वह नाममात्र के लिये पशु है, वस्तुतः वह मनुष्य है क्योंकि उसकी मति और मन दोनोंही सतर्क और सचेष्ट हैं । इसके विपरीत यदि कोई मनुष्य हिंसा करता है, और आदर्श अहिंसा धर्म की अवहेलना करता है तो वह भी नाममात्रके लिये मनुष्य है पर वस्तुतः वह पशु है । क्योंकि उसकी मति और मन - दोनोंही कुचेष्टा में लवलीन हैं। ऐसा मानव सही अर्थों में मानवता का कलंक है, क्योंकि प्रायः सभी ही धर्मों और दर्शनों के आचार्यों ने कहा-अरे आदभी! अगर तूं आदमी है तो आदमी को आदमी समझ । दूसरे शब्दों में अहिंसक बन और अहिंसाका पालन कर । . बहुतेरे व्यक्ति तो अहिंसा का पूर्णतया अर्थ भी नहीं जानते हैं और जो जानते हैं उनमेसे अधिकांश दूसरों को समझाने भरके लिये जानते हैं, खुद समझने या दैनिक जीवन में प्रयोग करने के नहीं जानते हैं । अधिकांश लोगों की धारणा है कि किसी प्राणीके प्राण लेने में ही हिंसा होती है अन्य प्रकारसे नहीं, पर यह शुद्ध भ्रम है। शस्त्रप्रहार अथवा प्राणहरण के सिवाय अन्य प्रकार भी हिंसा सम्भव है। किसी को अकारण कटुवचन कहना, मद्य-मधु खाना, चमडा-रेशम का उपयोग करना हिंसा ही है, अहिंसा नहीं। इस दिशा में द्रव्य हिंसा-भावहिंसा भेद लिये जैन ग्रन्थ एक बहुत बडी मात्रा में पठनीय सामग्री देते हैं, जो उत्सुक वहीं से प्राप्त करलें । अहिंसा के एक से अधिक अर्थ और तुलना भारतवर्ष के प्रधान मन्त्री पं. जवाहरलाल नेहरू ने 'मेरी कहानी' में अहिंसा विषयक जो निम्नलिखित पंक्तियां लिखी है, उनमें अस्पष्टतया अहिंसा की परिभाषा भी आ गई है ओर उसकी असाधारण सूचक महत्ता भी, “यद्यपि उसका नाम नकार में है तो भी वह बहुत बल और प्रभाव रखने वाला. उपाय है और ऐसा उपाय जो अत्याचारी की इच्छा के सामने चुपचाप सिर झुकाने के विरुद्ध है" आज ही नहीं बल्कि अतीत में भी भारतवर्ष मे अहिंसा का निर्वृति परक अर्थ किया गया, जो हिंसा का निषेध करता है। 'अहिंसा' शब्द में दो शब्द जुड़े है:-१'अ'२"हिंसा'. 'अ' का अर्थ है नहीं,और हिंसा'का अर्थ है दूसरे के प्राणों का हरण करना, पर यह न समझा जावे कि अपने प्राणों का हरण करना ते अहिंसा के अन्तर्गत होगा । प्रत्युत जब दूसरे के प्राणों को हरण करना भी हिंसा है तो अपने प्राणों को हरना या आत्मघाती प्रवृतियां अपनाना तो हिंसा होगा ही । अतएव अहिंसा का अर्थ हुआ, दूसरे के [अपने भी] प्राणों का हरण न करना बल्कि दयामयी प्रवृत्ति करना । दूसरे शब्दों में अहिंसा का अर्थ है, तुम स्वयं सुखी और खुशी होकर जिओ और दुसरों को भी जीने दो । तुम स्वयमेव जीवनके धरातल पर उठो और Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012074
Book TitleYatindrasuri Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size14 MB
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