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________________ ८४ महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व १.७ समाचारी-शतक प्रस्तुत ग्रन्थ में विद्वद्वर्य समयसुन्दर ने आचार-सम्बन्धी २०० विवादास्पद प्रश्नों का समाधान करते हुए खरतरगच्छ की परम्परा की आगम-सम्मतता सिद्ध की है। लेखक के पहले भी समय-समय पर खरतरगच्छ के आचार्यों ने ऐसे ग्रन्थ लिखे थे। इन ग्रन्थों में मणिधारी जिनचन्द्रसूरि रचित 'पदव्यवस्था कुलक', आचार्य जिनप्रभसूरि रचित 'विधिप्रपा', रुद्रपल्लीय आचार्य वर्द्धमानसूरि रचित 'आचार-दिनकर' आदि उल्लेखनीय हैं। इन सब ग्रन्थों के होते हुए भी लेखक ने अन्य गच्छावलम्बियों द्वारा खरतरगच्छ पर किये जाने वाले सामयिक आक्षेपों का समाधान इस कृति में किया है। लेखक के अनुसार ऐसे गच्छावलम्बियों में तपागच्छ के उपाध्याय धर्मसागर प्रमुख थे। यद्यपि लेखक ने इस ग्रन्थ में अपने गच्छ पर किये जाने वाले आक्षेपों का प्रत्युत्तर दिया है, फिर भी उन्होंने किसी पर भी प्रत्याक्षेप नहीं किया है। उन्होंने शंकाओं के समाधान के सम्बन्ध में अपनी ओर से कुछ कहने की अपेक्षा अपनी मान्यता को पुष्ट करने वाले आगमिक प्रमाण देने का प्रयत्न अधिक किया है। आगमिक अथवा अन्य प्राचीन ग्रन्थों से प्रमाण प्रस्तुत करने के पश्चात् भी अन्त में यह निर्देश दिया है कि विशेष सत्य तो केवली-गम्य है। इससे उनकी उदार दृष्टि का ही परिचय प्राप्त होता है। इस ग्रन्थ की रचना कब हुई, यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता। यह ग्रन्थ श्री जिनदत्तसूरि प्राचीन पुस्तकोद्धार-फण्ड, मुम्बई (जिनदत्तसूरि ज्ञान भण्डार, सूरत) से प्रकाशित है। इस ग्रन्थ में आद्यन्त कहीं भी ग्रन्थ के रचना-काल का निर्देश नहीं किया गया है, किन्तु महोपाध्याय विनयसागर ने प्रस्तुत ग्रन्थ के रचना-काल का निर्देश ग्रन्थकार द्वारा लिखित निम्नलिखित पंक्तियों में किया है - प्रारब्धं किल सिंधुदेशविषये श्री सिद्धपुर्यामिदं। मूलत्राणपुरे क्रियाद्विरचितं वर्षत्रयात प्राग्मया॥ सम्पूर्ण विदधेपुरे सुखकरे श्री मेडतानामके। श्री मविक्रमसंवति द्वि-मुनिषट्-प्रालेयरोचिर्मिते॥१ उपर्युक्त उद्धरण से प्रकट होता है कि इस ग्रन्थ का प्रारम्भ वि० सं० १६६९ में सिद्धपुरी में हुआ और वर्षत्रय पश्चात् वि० सं० १६७२ में मेड़ता में यह ग्रन्थ पूर्ण हुआ। __ मोहनलाल द० देसाई ने भी अपने निबन्ध में उक्त रचना-काल का ही उल्लेख किया है, किन्तु इसकी प्रकाशित प्रति में उपर्युक्त श्लोक नहीं है। सम्भवत: जिस पाण्डुलिपि के आधार पर यह ग्रन्थ प्रकाशित हुआ है, उसमें उक्त पद्य लिखना छूट गया होगा। १. समयसुंदर कृति कुसुमांजलि, महोपाध्याय समयसुंदर, पृष्ठ ५३ २. आनंद-काव्य-महोदधि, मौक्तिक ७,कविवर समयसुंदर, पृष्ठ ३० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012071
Book TitleMahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabh
PublisherJain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
Publication Year
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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