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महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व का नाम प्रस्तुत किया । इन्द्र ब्राह्मण का रूप बनाकर आया। कालक ने निगोद पर सूक्ष्म विचार कहे । इन्द्र ने कालक का विशेष ज्ञान देखने के लिए अपनी आयु पूछी। कालक ने जब उसकी आयु सागरोपमों में देखी, तो उन्होंने इन्द्र को पहचान लिया । इन्द्र ने उनकी भूरि-भूरि प्रशंसा की और चला गया। उधर से कालक के शिष्य गौचरी लेकर वापस उपाश्रय आये, तो उन्हें अद्भुत आलोक दृष्टिगोचर हुआ। शिष्यों के पूछने पर कालक ने आद्यन्त बात बताई।
जीवन के अन्त में उन्होंने संलेखना - व्रत ग्रहण किया और समाधिपूर्वक मरकर देवलोक प्राप्त किया ।
कथाकार ने इस कृति में अनेक स्थानों पर ग्रन्थ-सूक्त, सुभाषित-वचनों, उद्धरणों आदि का प्रयोग किया है । कथा में लावण्य लाने के लिए उन्होंने कहीं-कहीं तत्कालीन हिन्दी में भी वाक्य-रचना की है । कथाकार की गद्यशैली कहीं-कहीं तो पद्यशैली-सी प्रतीत होती है । कथा का शब्द-विन्यास ही उसे साहित्यिक कोटि तक ले जाने में सहायक सिद्ध होता है ।
प्रस्तुत कथा 'कालिकाचार्य - कथा संग्रह' से संग्रहीत है, जिसके सम्पादक हैंअम्बालाल प्रेमचन्द शाह और प्रकाशक हैं कुंवरजी हीरजी छेड़ा, नलिया (कच्छ)। समयसुन्दर की इस कथा का प्राचीन राजस्थानी में भाषानुवाद भी हुआ है, जिसकी पाण्डुलिपि अभय जैन ग्रन्थालय, बीकानेर से प्राप्त हुई है । उस पाण्डुलिपि के अन्त में प्राप्त उल्लेखानुसार यह अनुवादित रचना जिनलाभसूरि के समय में पण्डित गिरधर ने सोजित नगर में लिखी थी।
१.६ श्रावकाराधना
जैन धर्म में श्रावक-धर्म एवं श्रमण - धर्म - दोनों का प्रतिपादन किया गया है। प्रस्तुत कृति का वर्ण्य विषय श्रावक-धर्म से सम्बन्धित है। इस कृति में लेखक ने श्रावक करणीय कर्त्तव्यों को पांच अधिकारों में विवेचित किया है। पाँच अधिकार निम्नलिखित
हैं.
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१. सम्यक्त्व-शुद्धिः, २. अष्टादशपापस्थानकपरिहार:, ३. चतुरशीतिलक्षजीवयोनिक्षामणम्, ४. दुष्कृत गर्हा एवं ५. सुकृत - अनुमोदना ।
१. सम्यक्त्व - शुद्धि - इसमें देव, गुरु और धर्म का स्वरूप बताते हुए कहा गया है कि इन तीनों पर अटूट श्रद्धा रखना ही सम्यक्त्व शुद्धि है ।
२. अष्टादश- पापस्थानक - परिहार – प्रस्तुत प्रकरण में अठारह पापस्थानों के नाम, स्वरूप आदि बताते हुए उन पापों के परिहार का निर्देश किया गया है । अठारह पाप ये हैं १. प्राणातिपात, २. मृषावाद, ३. अदत्तादान, ४. मैथुन, ५. परिग्रह, ६. क्रोध, ७. मान, ८. माया, ९. . लोभ, १०. राग, ११. द्वेष, १२. कलह, १३. अभ्याख्यान, १४. पैशुन्य,
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