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समयसुन्दर की रचनाएँ
चले जाने को कहा ताकि शत्रुजन उसे मृत्युदण्ड न दे सकें ।
अन्य साहिजनों ने सूरि के पर्युपासक साहि को साहानुसाहि बना दिया और सभी सुखपूर्वक रहने लगे। ये शककूल से आए थे, अतः ये "शक" कहलाए। इस प्रकार शक- शासकों का वंश चला।
कालक ने साध्वी सरस्वती को फिर से संयम में लगाया और स्वयं ने भी आलोचना-प्रतिक्रमण करके अपने गण का भार सम्भाला।
(२)
भृगुकच्छ नगर के राजा बलमित्र - भानुमित्र, जो कि कालक के भानजे थे, ने कालक को भृगुकच्छ आने के लिए साग्रह निमन्त्रण भेजा । कालक साहि से विदा लेकर भृगुकच्छ पहुँचे। वहाँ उनका स्वागत हुआ। राजा अन्य मतों की उपेक्षा करके मात्र जैनधर्म को ही श्रेष्ठ मानता था । तदर्थ राजा पुरोहित ने कालक से शास्त्रार्थ किया, पर वह पराजित हो गया। उसने एक चाल चलते हुए श्रावकों और राजा को कहा कि ये महान गुरु हैं, इन्हें केवल मिष्ठान्न-पान आदि ही गौचरी में देवें। श्रावकों ने वैसा ही किया । अन्त में कालक ने भृगुकच्छ को संक्लेशयुक्त स्थल जानकर वहाँ से प्रस्थान कर दिया । कथाकार कहता है कि बलभानु ने स्वजनों की अनुमति बिना ही कालक से प्रव्रज्या ग्रहण कर ली, जिससे भानुमित्र आदि कालक से रुष्ट हो गये। शेष सम्बन्ध पूर्ववत् है ।
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(३)
प्रमादग्रस्त हुए शिष्यों को कालक ने क्रिया आदि करने के लिए बहुत प्रेरणा दी, लेकिन उसमें कोई अन्तर न पड़ा। अतः एक दिन कालक ने उन्हें छोड़ दिया और शय्यातर को सम्पूर्ण बात समझाकर स्वयं अपने प्रशिष्य सागरचन्द्र के पास स्वर्णपुर नगर में चले गये । सागरचन्द्र व्याख्यान दे रहे थे, वे उन्हें पहचान न पाये । व्याख्यान समाप्ति पर सागरचन्द्र ने अहं से पूछा कि मेरा व्याख्यान कैसा लगा? यदि कोई संदेह हुआ हो, तो कहो । कालक ने धर्म-अधर्म की अनेकान्तवाद के आधार पर युक्तिसंगत समीक्षा की, जिसे सुनकर सागरचन्द्र आश्चर्यचकित हो गया।
उधर प्रमादी शिष्यों ने गुरु-वियोग हो जाने से दुःख किया। उन्होंने शय्यातर से गुरु के बारे में पूछा। उसने उन्हें उनके प्रमाद, अविनय आदि दुर्गुणयुक्त होने के कारण फटकारा। जब शिष्यों ने कहा कि अब हम साधु-आचरण करेंगे, तो उसने कालक के स्वर्णपुर में गमन करने बात बता दी। शिष्य वहाँ पहुँचे। उनसे जब ज्ञात हुआ कि पूर्व आए वृद्ध साधु ही कालक हैं, तो सागर ने उनसे क्षमा मांगी।
( ४ )
किसी अवसर पर सीमन्धर स्वामी ने इन्द्र को निगोद का स्वरूप बनाया, तो उसने पूछा कि भरत क्षेत्र में भी कोई निगोद-विचार को जानता है? भगवान् ने कालकाचार्य
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