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समयसुन्दर का जीवन-वृत्त उनकी उत्कर्ष, प्रज्ञाशीलता का परिचय देती है। उन्हें जैनसंघ द्वारा प्रदत्त गणि, वाचक/ वाचनाचार्य, उपाध्याय, महोपाध्याय प्रभृति उपाधियाँ भी उनकी ज्ञान-गरिमा एवं प्रज्ञाप्रकर्षता को उजागर करती हैं।
समयसुन्दर के समग्र साहित्य का सम्यक् अवलोकन करने पर ज्ञात होता है कि उनका ज्ञान बहुविध था। सम्भवतः एक भी विषय ऐसा नहीं, जो उनसे अस्पृष्य रहा हो। एक व्यक्तित्व में इतने विस्तृत ज्ञान की अवतारणा वास्तव में विलक्षण और आश्चर्यजनक बात है। व्याकरण, साहित्य, भाषा-शास्त्र, छन्द, न्याय, ज्योतिष, विधि-विधान, सिद्धान्त, इतिहास, आगम इत्यादि विविध विषयों का उन्हें विपुल ज्ञान था। वे शास्त्र-सिद्धान्तों के तो ज्ञाता थे ही, साथ ही साथ उन्हें लोक व्यवहारिक ज्ञान भी था। डा० सत्यनारायण स्वामी लिखते हैं, 'यदि यह कहा जाय कि महाकवि (समयसुन्दर) की कृतियों में वर्णित उनकी लघुता मात्र कवि-प्रथा का पालन ही थी, तो यह अत्युक्ति न होगी। वस्तुत: वे विद्वान् मनीषी थे। उनका ज्ञान-परिसर अति विशाल था। 'लोके-वेदे च' सर्वत्र उनकी समान गति थी। शास्त्रीयज्ञान के अतिरिक्त महाकवि व्यावहारिक और प्रातिभ ज्ञान के प्रकाण्ड पं० (पण्डित) थे।
समयसुन्दर के ज्ञानगाम्भीर्य को हम उन्हीं के कृतित्व के आधार पर प्रकट करेंगे। उन्हें शास्त्रीय और व्यावहारिक - दोनों प्रकार का ज्ञान था। अतः हम दोनों पर प्रकाश डालेंगे। १६.१.१ शास्त्रीय ज्ञान- समयसुन्दर का शास्त्रीयज्ञान गहनतम था। जैन शास्त्रों और उनके सिद्धान्तों का उन्हें गहराई से ज्ञान था। 'विसंवाद-शतक' में उन्होंने जैन शास्त्रों में प्राप्त विविध असंगतियों का वर्णन किया है। विशेष-संग्रह, विचार-शतक, फुटकर प्रश्नोत्तर, प्रश्नोत्तर-सार-संग्रह और विशेष-शतक आदि कृतियों द्वारा भी उनके सैद्धान्तिक ज्ञान का गाम्भीर्य प्रकट होता है। आगमों और उससे इतर जैन शास्त्रों में ऐसे अनेक प्रसंग हैं, जो पूर्वापरविरोधी एवं तर्क से असंगतिपूर्ण जैसे लगते हैं। समयसुन्दर ने ऐसे प्रसंगों का अपनी प्रज्ञा-प्रकर्षता के बल पर सम्यक् समाधान प्रस्तुत करते हुए सभी पूर्वापरविरोधी व्यक्तव्यों में तर्कसिद्ध सामंजस्य स्थापित किया। वस्तुतः ऐसा महत्त्वपूर्ण कार्य कोई विशिष्ट सिद्धान्तविद् ही कर सकता है।
इसी तरह 'समाचारी-शतक' एवं 'सन्देह-दोलावली-पर्याय' द्वारा उनका विधिविधान सम्बन्धी ज्ञान-गाम्भीर्य प्रकट होता है। मंगलवाद' नामक ग्रन्थ उनके न्यायशास्त्रीय ज्ञान पर अच्छा प्रकाश डालता है। समयसुन्दर ज्योतिषवेत्ता भी थे। कल्पसूत्र की कल्पलताटीका, गाथा-सहस्री और विशेष-शतक में प्राप्त ज्योतिष-सम्बन्धी सूक्ष्मतम तथ्यों से यह बात स्पष्ट हो जाती है। 'दीक्षा-प्रतिष्ठा-शुद्धि' तो पूर्णरूपेण ज्योतिष से सम्बन्धित है। १. महाकवि समयसुन्दर और उनकी राजस्थानी रचनाएँ, पृष्ठ ५०
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