SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 63
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व समयसुन्दर को व्याकरण-विषयक गहनतम ज्ञान था। अष्टलक्षी' नामक अपनी कृति में उन्होंने जो अनेकार्थ किये हैं, वे सभी प्रायः व्याकरण-सम्बन्धी नियमों पर आधारित हैं। उनके द्वारा विवेचित वैयाकरण ग्रन्थ -सारस्वत वृत्ति, सारस्वत-रहस्य, लिंगानुशासन-अवचूर्णि, अनिट्कारिका, सारस्वतीय-शब्द-रूपावली और वेट्थपदविवेचना - उनके विशिष्ट वैयाकरण ज्ञान के द्योतक हैं। उनके साहित्य में प्राप्त उल्लेखों से विदित होता है कि उन्होंने पाणिनीय व्याकरण, सिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासन, कलापव्याकरण, सारस्वत-व्याकरण, विष्णुवार्तिक आदि वैयाकरण ग्रन्थों का अध्ययन किया था। समयसुन्दर एक शब्द के अनेक अर्थ करने में सिद्धहस्त थे। एक शब्द के विविध प्रकार से अनेकार्थ प्रकट करना उनकी अपनी विशेषता थी। इस सम्बन्ध में उनकी अनेकार्थी कृतियों में 'अष्टलक्ष्मी' का नाम उल्लेखनीय है। यह उनके प्रखर पाण्डित्य की प्रतिनिधि कृति है। इसमें उन्होंने 'राजा नो ददते सौख्यम्' – इन आठ अक्षरों के दस लाख से अधिक अर्थ प्रस्तुत कर विद्वत्-समाज को चमत्कृत कर दिया। प्रस्तुत ग्रन्थ अखिल विश्व में एक विलक्षण रत्न माना जाता है। समयसुन्दर ने इस ग्रन्थ के प्रणयन से पूर्व अनेक कोषों का भी गठन किया है। उन्होंने इस कृति में निम्नलिखित कोषों का उल्लेख किया है - अभिधान चिन्तामणि-नाममाला कोष, धनंजय-नाममाला, हेमचन्द्राचार्य कृत अनेकार्थ-संग्रह, तिलकानेकार्थ, अमर-एकाक्षरी-नाममाला, विश्वशम्भु-एकाक्षरीनाममाला, सुधाकलश-एकाक्षरी-नाममाला, वरुरुचि-एकाक्षरी-निघंटु-नाममाला, जय सुन्दरसूरि कृत एकाक्षरी-नाममाला आदि। इसी तरह समयसुन्दर साहित्य और काव्यशास्त्रों के भी ज्ञाता थे। छन्दों और अलंकारों का भी उन्हें अच्छा ज्ञान था। 'भावशतक' के अलावा अन्य सभी कृतियों से उक्त बात का संकेत मिलता है। हारबन्ध, श्रृंगाटकबन्ध आदि दुष्कर छन्दों को भी उन्होंने व्यवहृत किया है। समयसुन्दर संगीत-शास्त्रज्ञ भी थे। उन्होंने लगभग ७० रागों और ३०० देशियों का प्रयोग किया है। समयसुन्दर की ज्ञानगरिमा को उजागर करने वाली एक अन्य उल्लेखनीय विशेषता है - विविध भाषाओं का ज्ञान । वे संस्कृत, प्राकृत, प्राचीन हिन्दी, राजस्थानी, गुजराती, सिन्धी आदि भाषाओं में प्रवीण थे। उन्होंने भाषा-शास्त्र से सम्बन्धित 'रूपकमाला' नामक ग्रन्थ पर एक सुन्दर व्याख्या भी लिखी है। इस प्रकार हम देखते हैं कि समयसुन्दर का शास्त्रीय ज्ञान बहुआयामी एवं विपुल था। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012071
Book TitleMahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabh
PublisherJain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
Publication Year
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy