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________________ ४६ महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व है। इस तरह पतित जीवन का पुनः संस्कार या परिशोधन कर आचरण को निर्मल बनाना ही क्रियोद्धार कहा जाता है। दुष्काल से मुक्त होने पर महोपाध्याय समयसुन्दर यह अनुभव करते हैं कि हमने आगमिक कथन से विपरीत आचरण किया है। अतः हमें साधु-जीवन के उच्च मूल्यों के आदर्शों को पुनः स्वीकार करना चाहिये। इसी उद्देश्य से कवि ने क्रियोद्धार करने का सोचा। परवर्ती कवियों के उल्लेखों से ज्ञात होता है कि समयसुन्दर ने वि० सं० १६९१ में यह ‘क्रियोद्धार' किया था। १६. व्यक्तित्व महोपाध्याय समयसुन्दर के आदि से अन्त तक की लगभग सभी घटनाओं का वर्णन हमने उपलब्ध ऐतिहासिक साक्ष्यों के आधार पर प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। उनके जीवन-चरित्र को एक समीक्षक दृष्टि से देखने पर उनके व्यक्तित्व की गरिमा हमें प्रभावित किये बिना नहीं रहती है। कविवर समयसुन्दर भव्य पुरुष थे। उनकी भव्यता आध्यात्मिकता और विद्वता से समन्वित थी। अतः वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। आज उनका कृतित्व ही उनके व्यक्तित्व की स्तुति करने का माध्यम है। समयसुन्दर के महान् व्यक्तित्व के बारे में डॉ० सत्यनारायण स्वामी ने लिखा है कि काव्य की निरवच्छिन्न पीयूषधारा से अभिषिक्त होने के कारण महाकवि की कृतियाँ महान् हैं, पर उनसे भी अधिक महान है उनका भव्य व्यक्तित्व। उनके व्यक्तित्व का प्रत्येक पार्श्व सर्वांग सुन्दर है। कवि की रचनाओं से ज्ञात होता है कि वे स्वभाव से सरल, विरक्त, निरभिमानी, विवेकवान्, परम श्रद्धालु, अध्ययनशील, प्रतिभापुंज, क्रान्तिकारी, साम्प्रदायिक समभावी, लोकप्रिय प्रवचनकार एवं जनकवि थे। यहाँ हम उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर समयसुन्दर के व्यक्तित्व के कतिपय महत्वपूर्ण पहलुओं की चर्चा करेंगे। १६.१ ज्ञान-गाम्भीर्य - समयसुन्दर प्रज्ञा-पुरुष थे। उनकी बुद्धि अध्ययन, अभ्यास, निरीक्षण आदि के द्वारा परिष्कृत, विकसित एवं संस्कृत थी। उनमें अनुभव, पांडित्य तथा विचारशीलता का प्रकाशमान् सम्मिश्रण था। इसीलिए वे सभी बातों, तत्त्वों या विषयों का वास्तविक रूप शीघ्र और सहज में समझ लेते थे। प्रज्ञा प्रकर्षः प्राग्वाटे'- यह उक्ति भी १. सकलचन्द गुरुसानिधि कीधी, सत्यासियइ तन थयउ ज्यांन। समयसुन्दर कहइ हिवहूं करिस्युं, उत्कृष्टी करणी ध्रमध्यान॥ - प्रस्ताव सवैया-छत्तीसी (३६) २. कीधो क्रिया उद्धार संवत साले हो, इक्काणु समे। - नलदवदन्ती-रास, परिशिष्ट ई; राजसोमकृत महोपाध्याय समयसुन्दर गीतम्, पृष्ठ १३३ ३. महाकवि समयसुन्दर और उनकी राजस्थानी रचनाएँ, पृष्ठ ४७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012071
Book TitleMahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabh
PublisherJain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
Publication Year
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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