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________________ उपसंहार कर्म का पवित्र संगम है, उसकी दिव्यता महान् से महीयान हुआ करती है 1 महोपाध्याय समयसुन्दर 'आत्मवत् सर्वभूतेषु' की अवधारणा से अभिभूत थे । उन्होंने अनेक राज्याधिकारियों को अपने प्रभाव से प्रभावित कर उनके राज्यों को अहिंसामय बनाया। सम्राट अकबर, मखनूम मुहम्मद शेख काजी, रावल भीमजी प्रभृति को अपनी विचारधाराओं का अनुयायी बनाना एवं उनके राज्य शासन में हिंसा - निषेध करवाना समयसुन्दर की अद्भुत प्रतिभा का प्रतीक है। समयसुन्दर यद्यपि खरतरगच्छीय थे, किन्तु अन्य गच्छों के प्रति भी उनको सहानुभूति थी। जिस युग में साम्प्रदायिकता अपनी चरम सीमा पर हो, उस युग में भी वे साम्प्रदायिकता से ऊपर उठे हुए एक निस्पृह साधक थे। दिगम्बर, तपागच्छ, पार्श्वचन्द्रगच्छ आदि सभी मतावलम्बियों से उनका मधुर सम्बन्ध था । उन्होंने जिस श्रद्धा से श्वेताम्बर तीर्थाधिपतियों के प्रति श्रद्धा व्यक्त की है, उसी श्रद्धा से वे दिगम्बर तीर्थाधिपतियों के प्रति भी नतमस्तक रहे । वे न केवल स्वयं साम्प्रदायिक पाशों से मुक्त रहे, अपितु अन्य मतावलम्बियों को भी इससे असमीपस्थ रहने की प्रेरणा देते थे । वस्तुतः इन सब गुणों के कारण ही समसामयिक एवम् परवर्ती कवियों तथा जैन समाज पर आपका प्रभुत्व छाया रहा। उनका व्यक्तित्व सार्वकालिक, सार्वदेशिक एवं विश्वजनीन रहा है । सम्प्रदाय रूपी बादलों से आवृत्त होने के कारण उनके व्यक्तित्व रूपी सूर्यमण्डल का प्रकाश सम्प्रदायेतर लोगों तक पहुँच न सका । स्वयं जैन सम्प्रदाय में भी आज सामान्य बौद्धिक स्तर के लोग महोपाध्याय समयसुन्दर के विषय में अज्ञात हैं, परन्तु इनका योगदान तो सम्प्रदायातीत एवं सर्वजनहिताय रहा है। उनकी अनुपमेय एवं अपरिमित साहित्य-साधना को देखते हुए उन्हें जैनधर्म का द्वितीय हेमचन्द्राचार्य कहा जाए, तो कोई अत्युक्ति न होगी। निखिल शास्त्रनिपुणता तथा बहुज्ञता के कारण ही उन्होंने महोपाध्याय आदि की उपाधि प्राप्त की थी । वस्तुतः इनमें एक साथ ही वैयाकरण, दार्शनिक, साहित्यकार, इतिहासकार, आलङ्कारिक, घन्दानुशासक, धर्मोपदेशक और युगकवि का समन्वय हुआ है। ४८५ इस प्रकार हम देखते हैं कि समयसुन्दर की योग्यता, उनकी क्षमता, उनका जीवन, उनका कार्य-कलाप, उनका आचार-व्यवहार आदि सभी गुण शतप्रतिशत उनके आदर्श व्यक्तित्व को उजागर करते हैं। यदि निष्पक्ष दृष्टि से कोई भी व्यक्ति उनके व्यक्तित्व का अवलोकन करता है, तो उससे प्रभावित हुए बिना नहीं रहेगा। विक्रम संवत् 1703, चैत्र शुक्ला 13 को अहमदाबाद में संलेखना सहित समयसुन्दर ने समाधिमरण प्राप्त किया। महोपाध्याय समयसुन्दर का शिष्य परिवार विस्तृत था । जैसे प्रतिभाशाली एवं विद्वान् वे स्वयं थे, वैसा ही उनका शिष्य-समूह भी था । उनके अनेक शिष्य थे, जिनमें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012071
Book TitleMahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabh
PublisherJain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
Publication Year
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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