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________________ ४८६ महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व हर्षनन्दन प्रमुख थे। समयसुन्दर स्वयं मुनि थे और उनके शिष्य भी मुनि थे, किन्तु पश्चवर्ती काल में हुए उनके शिष्य-प्रशिष्य यति हो गये थे। द्वितीय अध्याय का निष्कर्ष द्वितीय अध्याय है, 'समयसुन्दर की रचनाएँ । प्रस्तुत अध्याय में समयसुन्दर के कृतित्व का परिचय है। व्यक्ति के व्यक्तित्व अथवा अन्य किसी पहलू की जानकारी के लिए उसका कृतित्व ही मुख्य आधार है। महोपाध्याय समयसुन्दर की भारतीय साहित्य को महान् देन रही है। समयसुन्दर जैसे रचनाकार कम ही हुए, जिनकी विविध विषयों से सम्बन्धित रचनाएँ उपलब्ध होती हों। उन्होंने विद्वत् समाज के लिए जहाँ संस्कृत में साहित्य की सृष्टि की, वहीं जनहित के लिए प्रादेशिक भाषाओं में भी विपुल साहित्य का निर्माण किया। हमने उनकी प्राप्त रचनाओं की विपुलता देखते हुए विवेचन की सुविधा के लिए मौलिक संस्कृत रचनाएँ, संस्कृत-टीकाएँ, संग्रह-ग्रन्थ, भाषा-कृतियाँ, बालावबोध या भाषा-टीका, प्रकीर्णक रचनाएँ - इस प्रकार इन छ: विभागों मे विभक्त कर उनके सम्पूर्ण साहित्य का आकलन करने का प्रयास किया है। प्रत्येक रचना का नाम, रचना-स्थान, प्रेरणा या अनुरोधकर्ता, वर्ण्यविषय, रचना-शैली, रचना की प्रामाणिकता इत्यादि का परिशीलन किया है। हमने उनकी शताधिक बृहत् रचनाओं एवम् पंचशताधिक लघु प्रकीर्णक रचनाओं का परिचयात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया है। समयसुन्दर की रचनाओं के अध्ययन से ज्ञात होता है कि उनका व्याकरणशास्त्र में महान् योगदान रहा है। उन्होंने केवल वैयाकरण-ग्रन्थों पर व्याख्या-ग्रन्थ लिखे, अपितु उनके रहस्यों को भी प्रकट किया । भाषा-शास्त्र, भाषा-विज्ञान, व्याकरण - इन तीनों पर उनका महत्त्वपूर्ण योगदान रहा। छन्दःशास्त्र लक्षण-ग्रन्थ, काव्य-शास्त्र आदि विषयों से सम्बद्ध रचनाओं का भी उन्होंने गुम्फन किया था। अनेकार्थी साहित्य में समयसुन्दर का कौशल विशेष रूप से वर्णनीय है। उन्होंने 'अष्टलक्षी' अथवा 'अर्थरत्नावली' नामक कृति में 'राजा नो ददते सौख्यम्' - इस अष्टाक्षरीय वाक्य के दसलक्षाधिक अर्थों को प्रकट कर संसार के सम्पूर्ण साहित्य-जगत् को एक अलभ्य एवं अनुपम ग्रन्थ-रत्न प्रदान किया। इस ग्रन्थ की टक्कर का अन्य कोई ग्रन्थ साहित्य-लोक में अभी तक कहीं भी आविर्भूत नहीं हुआ है। समयसुन्दर के सैद्धान्तिक एवं दार्शनिक ग्रन्थों ने महाकोष का रूप धारण कर लिया है। उन्होने लगभग 350 दार्शनिक एवं सैद्धान्तिक प्रश्नों का सविस्तार समाधान किया है। प्रत्येक प्रश्न के उत्तर की पुष्टि के लिए उन्होंने अनेक प्रमाण पस्तुत किए। मनोवैज्ञानिक ढंग से जटिल प्रश्नों का सम्यक् निराकरण प्रस्तुत करना समयसुन्दर की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012071
Book TitleMahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabh
PublisherJain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
Publication Year
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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