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समयसुन्दर की रचनाओं में साहित्यिक तत्त्व २.१.५५ मुद्गशैल:पुष्करावर्तमेघप्लावितोऽपि नार्दी भवति। २.१.५६ मूंग मांहि ढुल्यो घीय। २.१.५७ मेरु अधिक कनक दीयउ। २.१.५८ रतन चिंतामणि लाभतां, कुण ग्रहइ कहउ काच। २.१.५९ राधावेधरी पूतली तीर सुं वींधवी फेरि । २.१.६० रूपइया खरा आगिमइ घाल्यां कसमल जायइ। २.१.६१ लशुनं कर्पूरवासितमपि न सुगन्धं स्यात्।' २.१.६२ लिख्या मिटई नहि लेख। २.१.६३ लोभ ते किसून थाई। २.१.६४ वन्ध्याया वा बहूपचारैपि न संतान-प्राप्तिः।२० २.१.६५ वामी दुरगा बोलती, पंथी करैय प्रयाण।११ २.१.६६ विषममृतमिश्रितमपि न मृष्टं भवति।१२ २.१.६७ समरथ सज्जा देई।१३ २.१.६८ सरखे सरखं सहु मिल्यु।१४ २.१.६९ सरज्यां बिन सखि क्युंकर पाइयइ, मन मान्या मेलाया।१५ २.१.७० साठी चोखा सूपडइ, छडतां ऊजला थायइ।१६ १. कालिकाचार्य-कथा, पृष्ठ २०६ २. सीताराम-चौपाई (४.४ दूहा ४) ३. मृगावती-चरित्र-चौपाई (१.२.१८) ४. वही (२.३ दूहा १३) ५. थावच्चासुत ऋषि-चौपाई (१.९.२४) ६. सीताराम-चौपाई (१.२.१८) ७. कालिकाचार्य-कथा, पृष्ठ २०६ ८. सीताराम-चौपाई (५.३.१) ९. चम्पकश्रेष्ठि-चौपाई (१.१३.४) १०. कालिकाचार्य-कथा, पृष्ठ २०७ ११. चम्पकश्रेष्ठि-चौपाई (१.१२.१९) १२. कालिकाचार्य-कथा, पृष्ठ २०६ १३. सीताराम-चौपाई (५.१.२७) १४. चम्पकवेष्ठि-चौपाई (२.४.१) १५. समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, श्री नेमिनाथ फाग (६) १६. सीताराम-चौपाई (१.२.१८)
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