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महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व २.१.७१ सुपंडित सुभाषित रसियो किम तजइ १ २.१.७२ साप मुखइ मुहिं उंदरी। २.१.७३ सीह मुखइ पडी मिरगली, सीचाणइ मुख चिडकली।३ २.१.७४ सुख सरसव दुख मेरु समाणि। २.१.७५ सूतउ सींह जगायउ। २.१.७६ सोनइ सामि न होई।६ २.१.७७ हुवनहारी बात ते हुवइ।
वास्तव में समयसुन्दर को कहावतों का विस्तृत ज्ञान था, जो कि उपर्युक्त उदाहरणों से स्पष्ट हो जाता है। अनेक स्थानों पर उन्होंने एक तथ्य की पुष्टि के लिए अनेक कहावतों का प्रयोग किया है; यथा -
चिंतामणि हो जउ पायउ रतन्न, तउ काच ग्रहइ नहीं को सही। पंचामृत हो जउ भोजन कीध, तउ खलि खावा किम मन थियइ। कंठ तांइ हो जउ अमृत पीध, तउ खारउ जल कहउ कुण पीयइ। मोती कउ हो जउ पहिरउ हार, तउ चिरमठि कुण पहिरइ हियइ। जसु गांठि हो लाख कोड़ि गरथ, ते ब्याज काढी दाम किम लीयइ। घर माहे हो जउ प्रगट्यउ निधान, तउ देसंतरि कहउ कुण भमइ। सोना कउ हो जउ पुरुसउ सीध, तउ धातुवादि नइ कुण धमइ। जिण कीधा हो जवहर व्यापार, तउ मणिहारी मनि किम गमइ।
जिण कीधउ हो सदा हाल हुकम्म, तउ वे तुंकार्यउ किम खमइ ॥ २.२ मुहावरे
___ समयसुन्दर के जन-साधारण की भाषा में भी साहित्य-सर्जन किया था। जनता की भाषा में प्रायः मुहावरों की प्रचुरता रहती है। अतः जनसामान्य में प्रचलित अनेक मुहावरों को उन्होंने सहज ही ग्रहण कर लिया। यही कारण है कि उनकी कोई भी ऐसी रचना नहीं है, जिसमें मुहावरा-प्रयोग का अभाव हो। यदि प्रयुक्त सभी मुहावरों की यहाँ १. वही (८.१.२) . २. मृगावती-चरित्र-चौपाई (१.५.६) ३. वही (१.५.५) ४. मृगावती-चरित्र-चौपाई (३.७.७) ५. वही (२.९.१६) ६. सीताराम-चौपाई (१.२.१७) ७. वही (५.६ दूहा २१) ८. समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, श्री अमरसर मण्डण श्री शीतलनाथ बृहत्स्तवनम् (५-९)
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