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________________ समयसुन्दर की रचनाओं में साहित्यिक तत्त्व १.२८ दान १. २९ दुर्वचन १.३० दोहरापन १.३२ धर्म अवसर देखी दीजिये रे, कीजै पर उपकार । लखमी नो लाहो लीजीये रे, समयसुन्दर कहै सार ॥ १ १.३१ द्रव्योपाय विनय विवेक ने जाणे मरम, श्रावक होइ नइ न करे धरम ॥ क्रिया न करइ कहावइ साध, नाम रतन दाम न लहइ आध ॥ मनुष्य जन्म नवि हारो आल, तमे पाणी पहली बांधो पाल ॥३ कोऽपि द्रव्योपायः कार्यः यथा सम्बलं भवति । ४ शरीरादि सर्वमनित्यं ज्ञात्वा विवेकिना । दीर्घदर्शिना मनुष्येण धर्मस्यैव संग्रह : कर्त्तव्य ॥" धर्मस्यापि पंडितेन सुवर्णस्येव परीक्षा कार्या । धरम थकी धन संपजइ रे, धरम थकी सुख होय । धरम थकी आरति टलइ रे, धरम समउ नहीं कोय ॥ ७ (क) (ख) (ग) १.३३ धर्म- मर्म झूठ बोल्या घणा जीभड़ी, दीधा कूड़ कलङ्क । गल जीभी थास्यै गलै, हुस्यइ मुँहडो त्रिबंक ॥२ जीवनई मारई जे नहीं, जूठ न बोलइ जेह । अणदीधउ जे ल्यइ नहीं, न धरइ नारी देह ॥ आरम्भ कर्म्म कर नहीं, न करई पाप करम्म । वलि जे इन्द्री वस करई, धरमनउ एह मरम्म ॥ १. चम्पक श्रेष्ठी - चौपाई (१.१३.२५ ) २. समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, आलोयण छत्तीसी (१३) ३. वही, व्रत पञ्चक्खाण गीतम् (७,९-१० ) ४. कालिकाचार्य - कथा, पृष्ठ २०६ कालिकाचार्य - कथा, पृष्ठ २०० Jain Education International ५. ६. वही, पृष्ठ २०० ७. दानशीलतपभाव - संवाद - शतक ( ५.३) ८. सीताराम - चौपाई ( ३, दूहा ४.३-४) For Private & Personal Use Only ४३.३ www.jainelibrary.org
SR No.012071
Book TitleMahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabh
PublisherJain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
Publication Year
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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