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महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व १.२४ ज्ञान
(क) ज्ञानेन बिना मानव: पशुरेव। (ख) ज्ञान बड़उ संसार, ज्ञान मुगति दातार।
ज्ञान दीवउ कस्यउ ए, साचउ सरदह्यौ ए॥ ज्ञान लोचन सुविलास, लोकालोक प्रकास।
ज्ञान बिना पसू ए, नर जाणइ किसूं ए॥२ १.२५ ज्ञान-कर्म-योग (क) क्रियावंत दीसइ फूटरउ, क्रिया उपाय करम छूटरउ।
पांगलउ ज्ञान किस्सउ कामरउ, ज्ञान सहित क्रिया आदरउ ॥३ (ख) किरिया सहित जउ ज्ञान, हुयइ तउ अति प्रधान।
सोनउ नइ सुहृत ए, सांख दूधइ भर् यउ ए॥ १.२६ ज्ञानी
(क) विद्यावन्तो हि पूज्यन्ते। (ख) विद्यावतां परदेशोऽपि स्वदेशः।६ (ग) ज्ञानी सासोसास, करम करइ जे नास।
नारकि नइ सही ए, कोड़ि वरस कही ए॥ ज्ञान की बात लहे गा ज्ञानी,
समयसुन्दर कहइ आतमध्यानी। १.२७ तप
भला दान शील भावना, पिण तप सरिखो नहीं कोय। दुःख दीजइ निज देह ने, वाते बड़ा न होय॥
१. कालिकाचार्य कथा, पृष्ठ १९९ २. वही, ज्ञानपंचमी वृहत्स्तवनम् (३-४) ३. वही, क्रिया प्रेरणा गीतम् (६-७) ४. वही, श्रीज्ञान पंचमी बृहत्स्तवनम् (८) ५. कालिकाचार्य कथा, पृष्ठ २०३ ६. वही, पृष्ठ २०४ ७. समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, ज्ञान पञ्चमी बृहत्स्तवनम् (६) ८. वही, अध्यात्म-सज्झाय (८) ९. वही, पुंजारत्न-ऋषि रास (४)
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