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________________ ४३४ महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व १.३४ धर्म-द्रव्य भक्षक की गति देव द्रव्य गुरु द्रव्य वलि, साधारण द्रव्य खाय। दीन हीन निर्धन थकउ, दुखियउ ते नर थाय ॥१ १.३५ निंदक निंदक निच्चय नरगइ जाई, निंदक चउथउ चण्डाल कहाई। निंदक रसना अपवित्र होई, निंदक मांस भक्षक सम होई॥ समयसुन्दर कहइ निन्दा म करिज्यो, परगुण देखि हरख मनि धरज्यो॥२ १.३६ निन्दा निन्दा न करजो कोई नी पारकी रे, निन्दा ना बोल्या महापाप रे। वेर विरोध बाधई घणा रे, निन्दा करतां न गिणइ माय-बाप रे।३ १.३७ परस्त्री जेहवी आगिनी झाल, विसकंदली विकराल। वाघणि भुजंगी होइ, परमारि कहइ सहु कोइ ॥ १.३८ परस्त्रीगमन (क) पररमणी फरसता, निज कुल मइलउ थाय।' (ख) परस्त्री नइ भोगवी, तुच्छ स्वाद तु लेसि। पिण नरके ताती पूतली, आलिंगन देसि॥६ १.३९ पाप-फल जीव तणी हिंसा करइ, बोलइ मिरषावाद । प्राण समा परधन हरइ, सेवइ पंच प्रमाद ।। नरक जायइ ते जीवड़उ, पामइ दुख अनंत। छेदन भेदन ते सहइ, भाखइ श्री भगवंत ॥ १.४० पापी पापात्मा न प्रतिबुद्ध्यते। १. नरकगति-प्राप्ति गीतम् (५) २. निन्दा परिहार गीतम् (२-४) ३. निन्दावारक गीतम् (१) ४. सीताराम-चौपाई (५.६.४५) ५. सीताराम-चौपाई (६.१.१८) ६. समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, आलोयणा छत्तीसी (१५) ७. वही, नरक-गति-प्राप्ति गीतम् (१-१) ८. कालिकाचार्य-कथा, पृष्ठ २०६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012071
Book TitleMahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabh
PublisherJain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
Publication Year
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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