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समयसुन्दर की रचनाओं में साहित्यिक तत्त्व ५.२.२५७ श्री जिनचन्द्रजी सा।
- शाब-प्रद्युम्न-चौपाई (६) ५.२.२५८ श्री नवकार मनि ध्याइयइ रे।
- क्षुल्लक ऋषि-रास (१); नलदवदन्ती-रास (२.५);
तुर्य विसामा गीतम्; सीताराम-चौपाई (९.५) ५.२.२५९ श्रेणिक राय हूँ रे अनाथी निर्ग्रन्थ।
- चार प्रत्येकबुद्ध-रास (२.७) ५.२.२६० सकल चीतारां मांहि सुन्दरु रे।
- द्रौपदी-चौपाई (१.९) ५.२.२६१ सकल सदा फल पास जिणंद।
- नलदवदन्ती-रास (५.४) ५.२.२६२ सखि जादव कोडि सुं परिवरे प्रियु आवे तोरण वारि रे ।
--- क्षुल्लक-ऋषि-रास (३); द्रौपदी-चौपाई (१.७) ५.२.२६३ सगुण सनेही रे मेरे लाल, विनती सुणो मेरे कंत रसालु।
-पुण्यसार-रास (२); चार प्रत्येकबुद्ध-रास (३.३);
मृगावती-चरित्र-चौपाई(१.९) ५.२.२६४ सफल संसार-नी।
- साधु वन्दना-रास (१३) ५.२.२६५ सरीखी छै पण आकजी लहरकउ छइ।
- सीताराम-चौपाई (५.४) ५.२.२६६ सलुणे हावा तेरा रे।
- द्रौपदी-चौपाई (१.१३) ५.२.२६७ सहजइ छेहड़उ रे दरजणि स वालि रे भर जोवन माती।
- सिंहलसुत-चौपाई (४) ५.२.२६८ सहर भलो पणि सांकड़ो रे, नगर भलो पणि द्वारि रे।
- सीताराम-चौपाई (५.४) ५.२.२६९ सांभली सनतकुमार हाँ राजेसरजी।
- नलदवदन्ती-रास (६.९) ५.२.२७० साधु जी न जाए परघर एकलो।
- चार प्रत्येकबुद्ध-रास (३.८); श्री नर्मदासुन्दरी सती गीतम् ५.२.२७१ साधुनइ वहिराव्युं कडवू तुंबड़ो रे।
- श्री भवदत्त-नागिला गीतम्
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