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________________ ४२३ समयसुन्दर की रचनाओं में साहित्यिक तत्त्व ५.२.२५७ श्री जिनचन्द्रजी सा। - शाब-प्रद्युम्न-चौपाई (६) ५.२.२५८ श्री नवकार मनि ध्याइयइ रे। - क्षुल्लक ऋषि-रास (१); नलदवदन्ती-रास (२.५); तुर्य विसामा गीतम्; सीताराम-चौपाई (९.५) ५.२.२५९ श्रेणिक राय हूँ रे अनाथी निर्ग्रन्थ। - चार प्रत्येकबुद्ध-रास (२.७) ५.२.२६० सकल चीतारां मांहि सुन्दरु रे। - द्रौपदी-चौपाई (१.९) ५.२.२६१ सकल सदा फल पास जिणंद। - नलदवदन्ती-रास (५.४) ५.२.२६२ सखि जादव कोडि सुं परिवरे प्रियु आवे तोरण वारि रे । --- क्षुल्लक-ऋषि-रास (३); द्रौपदी-चौपाई (१.७) ५.२.२६३ सगुण सनेही रे मेरे लाल, विनती सुणो मेरे कंत रसालु। -पुण्यसार-रास (२); चार प्रत्येकबुद्ध-रास (३.३); मृगावती-चरित्र-चौपाई(१.९) ५.२.२६४ सफल संसार-नी। - साधु वन्दना-रास (१३) ५.२.२६५ सरीखी छै पण आकजी लहरकउ छइ। - सीताराम-चौपाई (५.४) ५.२.२६६ सलुणे हावा तेरा रे। - द्रौपदी-चौपाई (१.१३) ५.२.२६७ सहजइ छेहड़उ रे दरजणि स वालि रे भर जोवन माती। - सिंहलसुत-चौपाई (४) ५.२.२६८ सहर भलो पणि सांकड़ो रे, नगर भलो पणि द्वारि रे। - सीताराम-चौपाई (५.४) ५.२.२६९ सांभली सनतकुमार हाँ राजेसरजी। - नलदवदन्ती-रास (६.९) ५.२.२७० साधु जी न जाए परघर एकलो। - चार प्रत्येकबुद्ध-रास (३.८); श्री नर्मदासुन्दरी सती गीतम् ५.२.२७१ साधुनइ वहिराव्युं कडवू तुंबड़ो रे। - श्री भवदत्त-नागिला गीतम् Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012071
Book TitleMahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabh
PublisherJain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
Publication Year
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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