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________________ ४२० महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व ५.२.२१० मेरउ गुरु जिणचंदसूरि। - विहरमान-वीसी स्तवनाः (१३) ५.२.२११ मेरा साहिब हो श्री शीतलनाथ की। - सीताराम-चौपाई (३.५) ५.२.२१२ मेरी बहिनी सेतुंज भेटुंगी। - श्री नेमिराजुल गीतम् ५.२.२१३ मेरे अरहना। - थावच्चासुत ऋषि-चौपाई (१.८) ५.२.२१४ मोडिआ नी। -द्रौपदी-चौपाई (१.१०) ५.२.२१५ मो मनडउ हे डाल हो मिश्री ठाकुर महि दरउ। - थावच्चासुत ऋषि-चौपाई (२.१) ५.२.२१६ मोरा साहिब हो श्री शीतलनाथ कि वीनति सुणउ एक मोरड़ी। - श्री इलापुत्र गीतम् ५.२.२१७ मोरो मन मोह्यो हण डूंगरे, मरुदेवी माता जी इम भणे।। - चार प्रत्येकबुद्ध-रास (३.१२) ५.२.२१८ मोहना - मृगावती चरित्र-चौपाई (३.१०) ५.२.२१९ यादवरायउ रंग लागउ जी। - शांब-प्रद्युम्न-चौपाई (१७) ५.२.२२० योगना-नी। - गणधरवसही आदि जिन स्तवनम् (४); चार प्रत्येकबुद्ध रास (३.१३) ५.२.२२१ राजा जो मिले। - चम्पकवेष्ठि-चौपाई (१.३) ५.२.२२२ राजा नी कुमरी ए चाल। - पुण्यसार-रास (३) ५.२.२२३ राजिमती राणी इण परि बोलइ, नेमि विणा कुण घूघट खोलइ। - थावच्चासुत ऋषि-चौपाई (२.८); सीताराम-चौपाई (३.२); केशीप्रदेशी प्रबन्ध (३); श्री मंगलोर मंडण नवपल्लव __पार्श्वनाथ भास; श्री अंजना सुन्दरी सती गीतम् ५.२.२२४ रातड़ी नइ रमी नइ किहां थी आवीया। - मृगावती-चरित्र-चौपाई (२.५) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012071
Book TitleMahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabh
PublisherJain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
Publication Year
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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