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समयसुन्दर की रचनाओं में साहित्यिक तत्त्व ५.२.१६६ प्रहसम सूधा साधु नमुं नित ।
५.२.१६७ प्राण पियारी जानकी ।
५.२.१६८ प्राण पियारे कां तजी री ।
५.२.१७० फाग ।
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५.२.१६९ प्रियुड़ा मानउ बोल हमारउ रे ।
चार प्रत्येकबुद्ध - रास (३.६), नलदवदन्ती - रास (४.३)
५.२.१७५ बीसामा-रो।
५. २. १७६ बुझि रे तुं बुझि प्राणी ।
५.२.१७७ बेकर जोड़ी ताम ।
५.२.१७८ बे बांधव वांदण चल्या |
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-साधु- वन्दना - रास (१६)
- चम्पक श्रेष्ठि-चौपाई (२.२)
- मृगावतीचरित्र - चौपाई (२.४)
५.२.१७१ फिट जीव्युं थारुं रामला रे, जसूड़ी लूखउ लूखउ खाय । श्री जिनसागरसूरि गीतानि (१२); श्री दुमह प्रत्येकबुद्ध गीतम् ५.२.१७२ बंसी बाज हो बीणा ।
- चार प्रत्येकबुद्ध रास (३.१७)
५.२.१७३ बधावरी ।
- सीताराम चौपाई (७.६)
५.२.१७४ बांधव गज थकी ऊतरउ |
- द्रौपदी - चौपाई (१.५)
- पौषध विधि गीतम् (२)
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- सीताराम - चौपाई (३.३); नलदवदन्ती - रास ( २.४)
५.२.१७९ बोलड़ो देज्यो सबक पुत्र ।
५.२.१८० भणइ मन्दोदरी दैत्य दसकंध सुणी रे ।
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- चम्पक श्रेष्ठि- चौपाई (२.४); साधु- वन्दना - रास (५), श्री ज्ञान पंचमी वृहद्स्तवनम् (२); श्री संयती साधु गीतम् ;
चार प्रत्येकबुद्ध - रास (३.१५)
- चम्पक श्रेष्ठि- चौपाई (१.११)
चार प्रत्येकबुद्ध रास ( २.५ ) ; सीताराम - चौपाई (६.१ )
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• १७ प्रकार जीव अल्प - बहुत्व गर्भित स्तवनम्
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- क्षुल्लक ऋषि - रास (२)
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