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________________ ४०८ _महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व . ५.२.३९ कबहि मिलइ मुझ जउ करतारा। - द्रौपदी-चौपाई (२.११) ५.२.४० करइ चितारइ निन्दा आपणी जी। - नलदवदन्ती-रास (४.४) ५.२.४१ कर जोड़ी आगल रही। - – गणधरवसही आदिजिन स्तवन (११); चम्पकवेष्ठि-चौपाई(२.१) ५.२.४२ करम परीक्षा करण कुमर चाल्यो। - चम्पकवेष्ठि-चौपाई (९) ५.२.४३ कलाला-नी। - द्रौपदी-चौपाई (३.२) ५.२.४४ कहिज्यो पण्डित एह हीयाली। - चम्पकवेष्ठि-चौपाई (१.१३) ५.२.४५ काची कली अनार की रे हां सूयड़ा रह्या लोभाय मेरे ढोलणा। - चार प्रत्येकबुद्ध रास (१.४); श्री अरहनक मुनि गीतम् ५.२.४६ काछिवा। - मृगावती-चरित्र-चौपाई (१.१३) ५.२.४७ कान्हा तुं चउगो माढू रे। .- द्रौपदी-चौपाई (२.७) ५.२.४८ कामणगारा रे लोक। - शाम्ब-प्रद्युम्न-चौपाई (२.३) ५.२.४९ कारिण कुण समारइ देहा। - मृगावती-चरित्र-चौपाई (१.३) ५.२.५० किहां गयउ नल किहां गयउ। - श्री राजुल-रहनेमि गीतम् ५.२.५१ कुमर पुरन्दर चल्यउ आगइ आगइ अति आणंद हीयइ धरतउ। - नलदवदन्ती-रास (६.७) ५.२.५२ कुमरी जाण्यउ कारिज सीधु, तात बिना पणि दहव कीधउ। - मृगावती-चरित्र-चौपाई (३.७) ५.२.५३ कुमरी बोलावइ कूबडउ। - धनदत्त-चौपाई (३); थावच्चासुत ऋषि चौपाई (१.१०) ५.२.५४ कृपानाथ लइ कूपनउ सधर्यउ री। -विहरमान वीसी स्तवनाः (८) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012071
Book TitleMahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabh
PublisherJain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
Publication Year
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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