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_महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व . ५.२.३९ कबहि मिलइ मुझ जउ करतारा।
- द्रौपदी-चौपाई (२.११) ५.२.४० करइ चितारइ निन्दा आपणी जी।
- नलदवदन्ती-रास (४.४) ५.२.४१ कर जोड़ी आगल रही।
- – गणधरवसही आदिजिन स्तवन (११); चम्पकवेष्ठि-चौपाई(२.१) ५.२.४२ करम परीक्षा करण कुमर चाल्यो।
- चम्पकवेष्ठि-चौपाई (९) ५.२.४३ कलाला-नी।
- द्रौपदी-चौपाई (३.२) ५.२.४४ कहिज्यो पण्डित एह हीयाली।
- चम्पकवेष्ठि-चौपाई (१.१३) ५.२.४५ काची कली अनार की रे हां सूयड़ा रह्या लोभाय मेरे ढोलणा।
- चार प्रत्येकबुद्ध रास (१.४); श्री अरहनक मुनि गीतम् ५.२.४६ काछिवा।
- मृगावती-चरित्र-चौपाई (१.१३) ५.२.४७ कान्हा तुं चउगो माढू रे।
.- द्रौपदी-चौपाई (२.७) ५.२.४८ कामणगारा रे लोक।
- शाम्ब-प्रद्युम्न-चौपाई (२.३) ५.२.४९ कारिण कुण समारइ देहा।
- मृगावती-चरित्र-चौपाई (१.३) ५.२.५० किहां गयउ नल किहां गयउ।
- श्री राजुल-रहनेमि गीतम् ५.२.५१ कुमर पुरन्दर चल्यउ आगइ आगइ अति आणंद हीयइ धरतउ।
- नलदवदन्ती-रास (६.७) ५.२.५२ कुमरी जाण्यउ कारिज सीधु, तात बिना पणि दहव कीधउ।
- मृगावती-चरित्र-चौपाई (३.७) ५.२.५३ कुमरी बोलावइ कूबडउ।
- धनदत्त-चौपाई (३); थावच्चासुत ऋषि चौपाई (१.१०) ५.२.५४ कृपानाथ लइ कूपनउ सधर्यउ री।
-विहरमान वीसी स्तवनाः (८)
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