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समयसुन्दर का वर्णन - कौशल
चित्रण से ही संबंधित हैं । कवि के 'अलंकार-शिल्प' के अन्तर्गत उपमा, उत्प्रेक्षा, आदि अलंकारों में प्रदत्त उदाहरण इस परिप्रेक्ष्य में विशेष रूप से दर्शनीय हैं।
निष्कर्षत: हम यह कह सकते हैं कि सौन्दर्यप्रेमी कवि समयसुन्दर ने इस अतान्त व्याप्त प्रकृति की नानारूपिणी छवियों का चुन-चुन कर चित्रण किया है, जो कि नितान्त मनोरम एवं प्रभावशाली है । कवि का प्राकृतिक चित्रांकन उसके समृद्ध कवित्व का प्रकाशक है । अन्त में हम इतना अवश्य कहेंगे कि कविवर ने जिस कमनीयता एवं शालीनता के साथ प्रकृति का चित्रण किया है, उनसे उनकी रचनाओं में मणि-कांचन का संयोग प्रतिफलित हुआ है। २. नगर - वर्णन
समयसुन्दर ने देश और नगरों का अनेक स्थानों में ललित वर्णन किया है। उपमा और उत्प्रेक्षा- युक्त होने के कारण सभी वर्णन मनोहर बन पड़े हैं। उदाहरण के लिए उनके कथा-परक साहित्य से किसी भी कथा का पूर्वांश लिया जा सकता है । यथा अस्मिन् जम्बूद्वीपे भरतक्षेत्रे धारावासं नाम नगरमभूत् । परं तन्नगरं की दृशमस्ति ? यस्मिन् नगरे अङ्गदेश- बङ्गदेश-तिलङ्गदेश-कलिङ्गदेश- वराङ्गदेश-प्रयागदेश-सुयागदेशमुरुण्डदेश- पुलिन्ददेश- सुरेन्द्रदेश- समुद्रदेश - चित्रकूट देश - लाटदेश-घाटदेश- नाट्यदेशविराटदेश, केलिवाटदेश - भाटदेश-वाटदेश- कुण्टदेश- बुंदेश - घोडादेश - धाटदेश मेदपाटदेश-मगधदेश- सोरठदेश - कच्छदेश- गूर्जरदेश- मालवदेश-काश्मीरदेश- काबलिदेशभूंटंतदेश-बदकसांनदेश- बंगालदेश - कोङ्कणदेश- पञ्चभर्तृदेश - श्री राज्यदेश- परतकालदेश हबसीदेश-फिरङ्गीदेश- पठाणदेश - जलमानसदेश-मरुस्थलदेश- पञ्चालदेश-सिन्धुदेशदक्षिणदेश- पूर्वदेश-पश्चिमदेश - उत्तर देश-प्रमुखा नानादेशवास्तव्यव्यवहारिणो विविधवस्तुक्रयाणकानि लात्वा आगत्य च व्यापारं कुर्वन्ति । पुनरिदं नगरं अष्टाविशद् वकारै: शोभितं वर्तते । ते चामी
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वापी-वप्र-विहार-वर्ण-वनिता वाग्मी वनं वाटिका,
वैद्य - ब्राह्मण - वैश्य - वादि - विबुध - वेश्या वणिग् वाहिनी । विद्या - वीर - विवेक वित्त-विनयो वाचंयमो वल्लिका,
वस्त्रं वारण- वाजि - वेसर- वरं चैभिः पुरं शोभितम् ॥ पुनः यस्मिन् नगरे एवंविधा स्थिति यस्यां देवगृहेषु दण्डघटना, स्नेहक्षयो दीपके
वन्तजङ्गिलिकायं द्विरसना खङ्गेषु मुष्टिर्यथा । वादस्तर्कविचारणासु विपणिश्रेणीषु मानस्थिति:,
बन्धः कुन्तलवल्लरीषु सततं लोकेषु नो दृश्यते ॥ १. कालिकाचार्य - कथा-संग्रह, पृष्ठ १९७
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