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________________ ३१८ महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व इत्यादि ऋद्धिसमृद्धिसहितं सुरलोक सदृशं (नगर) ज्ञेयम्। उपर्युक्त उदाहरण में हम देखते हैं कि कविवर ने धारावास नामक नगर को ५३ देशों की उपमा से उपमित किया है और उन सभी देशों के व्यापारी वस्तु-व्यापार के लिए इस नगर में आते हैं। अनुप्रास अलंकार के रमणीय प्रयोग से नगर-वर्णन में एक अद्भुत चमत्कार उद्घाटित हुआ है। उक्त सम्पूर्ण पंक्तियाँ तत्कालीन धारावास अर्थात् भारत की सम्पन्नता की धोतिका हैं - नीचे देखिये, देव-निर्मित द्वारिका नगरी का अत्यन्त रुचिर वर्णन - सुस्थित सुर द्यइ नगरी ठाम। कौस्तुभ रतन संख अभिराम। इंद आदेसइ धनद तिहां आवइ। बारबती नगरी नीपावइ॥ नव योजन नगरी विस्तारा। बार जोयण आराम अपारा। चामीकर प्राकार मनोहर। शत्रुकटक भट अगम अगोचर ॥ पंच रतन मणिमय कोसीसा। राजसिरी जाणे आरीसा। तेज प्रकास प्रबल निसि दीसइ । अंधकार नउ लेस न दीसइ । धण कण कंचण माणिक धारा। धनइ भरइ कोठारा भंडारा। रिद्धि समृद्धि करी सुख सारा। जाणे अलकापुरी अवतारा॥ अति ऊँचा यादव आवास। दंड कलस धज पुण्य प्रकास। मणि कंचण प्रतिबिंब्या तारा। ग्रहण करइ मुगताफल दारा॥ उत्तुंग तोरण जिन प्रासादा। रणछण रणकइ घंट निनादा। आपण श्रेणि अनोपम सोहइ। चउरासी चउहटा मन मोहइ॥ वन वाडी मढ मन्दिर मण्डित, प्रमुदित लोक वसइ अति पण्डित। जोर वहइ यादवनउ वारउ, सरगपुरी सुरनउ अनु-कारउ॥१ यद्यपि उपर्युक्त वर्णन कवि की प्रथम भाषा कृति में हुआ है, तथापि यह अत्यन्त चारु एवं प्रभावशाली बना है। राम, लक्ष्मण एवं सीता के वनवास-काल में एक समय किसी यक्ष ने उनके रहने के लिए एक समृद्धिशाली नगरी का निर्माण किया। इसमें राजभवन, मन्दिर और कोट्याधीशों के भवन सुशोभित थे। द्रष्टव्य है, नगरी का स्वाभाविक किन्तु कान्त चित्रांकन - (रामचन्द्रनइ पुण्यइ करि, तिण यक्षइ तत्काल।) देवनीमी नगरी नवी, नीपाई सुविसाल॥ गढमढ़ मन्दिर मालीया, ऊँचा बहुत आवास। राजभुवन रलियामणा, लखमी लील विलास॥ १. सांब-प्रद्युम्न चौपाई (१.६.१२) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012071
Book TitleMahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabh
PublisherJain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
Publication Year
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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